पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१०६

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गोल-सभा से हमारा और साथ ही पिताजी का भी विरोध अवश्य है 1 । मैं नहीं समझता कि वह हमारी आवश्यकता, हमारी मांग और वर्तमान परिस्थितियों की किस प्रकार रक्षा करेगा। पिताजी और साथ ही मैं इस बात से भली भाँति सहमत हैं कि कुछ समय की संधि के लिये हम लोग समझौता न करेंगे, जो आज हमारी इस पहुँची हुई स्थिति को विफल कर सके । इसीलिये किसी निर्णय तक पहुँचने के पहले ही हमको उसके संबंध में अधिक-से-अधिक सावधानी के साथ सोच-समझ लेना चाहिए। मैं समझता हूँ कि दूसरी ओर से अभी तक कोई ऐसो बात नहीं पाई जाती, जिस पर बहुत कुछ विश्वास किया जाना चाहिए। इसलिये मुझे अपनी ओर से उपस्थित की जानेवाली बातों में किसी प्रकार का भ्रम और भूल हो जाने का बहुत डर मालूम होता है। मैं स्वयं अपने आपको इस समय बहुत झुका हुआ देखता हूँ, मैं तो युद्ध पसंद करनेवाला आदमी हूँ। इसी के द्वारा मुझे आज अनुभव होता है कि मैं जिंदा हूँ । गत चार महीनों में भारत के स्त्री-पुरुषों और बच्चों ने जो काम किया है, उससे मेरा गर्व बहुत बढ़ गया है, और आज मेरा मस्तक ऊँचा हो रहा है। मैं इस बात को अनुभव करता हूँ कि बहुत-से आदमी युद्ध पसंद नहीं करते, वे शांति चाहते हैं। इसीलिये मैं अपनी आत्मा के खिलाफ, शांति के लिये, इस समझौते पर विचार करता हूँ। आपने अपने पवित्र स्पर्श से भारत को नवीन भारत के रूप