पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१०८

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5 गोल-सभा जबानी की, उसके निष्कर्ष-स्वरूप नेहरू पिता-पुत्रों के दोनो पत्र पढ़कर महात्माजी ने मि० जयकर को ये बातें लिखा दी- (१) कोई ऐसी स्कीम मुझे स्वीकृत न होगी, जिसमें एक तो अपनी इच्छा पर ब्रिटिश साम्राज्य से संबंध-विच्छेद करने का भारत को अधिकार न हो, और दूसरे भारत को ऐसा अधि- कार न दिया जाय, जिससे वह पूर्व प्रकाशित ११ शर्तों के आधार पर, संतोष के साथ, उसको स्वीकृत-अस्वीकृत कर सके! (२) वाइसराय को मेरी यह अवस्था मालूम होनी चाहिए कि गोल-सभा में जा कुछ मैं करूँगा, उसको देखकर वाइसराय यह बात न सोचें कि गोल-सभा के उपस्थित होने का संयोग आने पर मैं अभिमान में आकर इस प्रकार के विचार प्रकट करता हूँ। (३) वाइसराय को यह बात भली भाँति मालूम होनी चाहिए कि गोल-सभा में इस आशय का एक प्रस्ताव रखने का मेरा दृढ़ निश्चय है, जिसके फल-स्वरूप एक निर्वाचित कमेटी, एक ही साम्राज्य के अंतर्गत भारतीय प्रजा और ब्रिटिश-प्रजा- दोनो को दिए गए अधिकारों पर, निष्पक्ष भाव से, विचार करेगी। इसके बाद महात्माजी की सम्मति से यह उचित समझा गया कि सब नेता मिलकर परामर्श करें। वाइसराय ने आज्ञा दे दी, और १३-१४ अगस्त को महात्माजी, नेहरू पिता-पुत्र, सपू, जयकर, सरदार पटेल, डॉ० महमूद तथा श्रीमती नायडू