.१२६ गोल-सभा “मैंने गोल-सभा के लिये जिन भारतीय प्रतिनिधियों को चुना है, मुझे आशा है, देश सहमत होगा। कांग्रेस ने गोल-सभा में जाना अस्वीकार कर भयानक अदूरदर्शिता दिखाई है । हमने शक्ति-भर मेल की कोशिश की, पर सफलता न मिल सकी। कांग्रेस नेता हमसे निजी तौर पर विश्वास दिलाने को कहते थे पर वह बात मुझे पसंद नहीं। सब कुछ प्रकट रीति से करना चाहता हूँ। मेरे बड़े-से-बड़े विरोधी भी मुझ पर दुरंगी नीति ग्रहण करने का दोष नहीं लगा सकते । कांग्रेस के साथ किसी भी गुप्त प्रतिज्ञा का करना ठीक नहीं था। भारत के अन्य दलों के साथ हम विश्वासघात कैसे कर सकते थे। कांग्रेस ने देश को भीषण क्षति पहुँचाई है । विलायत के व्यापार को धक्का लगा है......। सभा में भारत और इंगलैंड के दल तो दो ही दो थे, परंतु परि- स्थितियों के कारण उनमें कई उप-विभाग भी हो गए थे। भारत में और देशी राज्यों ब्रिटिश भारत के प्रधान विभागों के सिवा आर्थिक और धामिक समस्याओं को लेकर कुछ और उप-विभाग भी बन गए थे। विलायत की ओर से एक तो पार्लियामेंट का दल था, और दूसरा भारत-सरकार का । पार्लियामेंट का एक ही दल हो, सो बात नहीं थी। उसमें भी मजदूर लिबरल और अनुदारदल, य तीन खंड थे। भारत का समष्टि-रूप से एक दल था, यह मान सकते हैं। यद्यपि लॉर्ड इरविन और उनके सहयोगी प्रायः भिन्न-भिन्न मनो- वृत्तियों के भाव मानते रहे। इस प्रकार भारत और ब्रिटेन के
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