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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१४१

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दसवाँ अध्याय १२६ हम दो ही ओदमी थे, तो भी मोलाना इतने जोर से बोल रहे थे, जैसे १० हजार की हाजिरी में व्याख्यान दे रहे हों।" स्व० मौलाना ने गोल-सभा में जो भाषण दिया था, उसका मर्म इस तरह है- "मुझे इस बात का दावा नहीं कि मुझमें आर्य-रक्त मौजूद है, किंतु मुझे इस बात का अवश्य दावा है कि जो रक्त लॉर्ड रीडिंग की धमनियों में दौड़ रहा है, वही रक्त मुझमें भी मौजूद है। आज मैं सात हजार मील समुद्र पार करके भारत की समस्या के भीषण प्रश्न पर विचार करने के लिये आया हूँ। जहाँ भारत और इस्लाम का प्रश्न है, वहाँ मैं पागल हूँ । 'डेली हेरल्ड' का कहना है कि मैं शिक्षित हूँ, सरकार का साथ देने में मैं देशद्रोही और धोकेबाज हूँ, और मैं सरकार के साथ सहयोग दे रहा हूँ।' इस संबंध में मेरा इतना ही कहना है कि ऐसे पवित्र कामों के लिये परमात्मा के नाम पर शैतानों के साथ भी काम करने के लिये मैं तैयार हूँ। मेरे सामने मेरे जीवन का अंतिम उद्देश्य जो है, उसी के लिये मैं आज सात हजार मील समुद्र पार करके आया हूँ । उस उद्देश्य की पूर्ति में ही मैं अपने जीवनोद्देश्य की पूर्ति समझता हूँ। मैं भारत में स्वतंत्र होकर जाना चाहता हूँ। मैं विना पूर्ण स्वाधीनता के परतंत्र देश में जाना नहीं चाहता। यदि देश को स्वतंत्रता प्राप्त न हुई, तो मैं अपनी मातृभूमि में अपनी क़ब्र न बनवाकर विदेश में बनवाऊँगा । यदि आज आप लोग भारत को पूर्ण स्वाधीनता