पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१३२ गोल-सभा कमेटी में मैंने पूर्ण स्वाधीनता के लिये प्रस्ताव पास किया था। उस समय भारत में कुछ दलबंदी हो रही थी। नेहरू-रिपार्ट का भी उद्दश्य औपनिवेशिक स्वराज्य ही था। यही नहीं, मेरे पुराने मंत्री पं० जवाहरलाल भी अपने पूज्य पिता क विचारों से भिन्न थे। फारसी में कहावत है-छोटा भाई होने की अपेक्षा कुत्ता होना बेहतर है। यह कहावत ठीक हम पर घटती है। आप देखते हैं कि मेरे बड़े भाई पूरे लंबे-चौड़े दिखाई पड़ रहे हैं। इसी प्रकार पं० जवाहरलाल के संबंध में भी एक कहावत -अपने पिता का पुत्र होने की अपेक्षा बिल्ली होना उत्तम है। गत १६२८ ई० में कांग्रेस के सभापति पं० मोतीलाल ने पं० जवाहरलाल के गम जोश पर ठंडा पानी छिड़क दिया, उठती हुई उमंग को दबा दिया । जब मैं उनके स्थान पर आया, तो मैंने औपनिवेशिक स्वराज्य का एकदम विरोध किया, और पूण स्वाधीनता के लिये आवाज ऊँची की । जब तक भारत नवीन उपनिवेश न होगा, तब तक हम भारत न लौटेंगे । हम लाग साम्राज्य से अलग हुए एक उपनिवेश में लौटंगे। हम भारतीय बत्तीस करोड़ हैं । जब भारत हजारों श्रादमियों को अकाल तथा हैजे की बीमारी में खा बैठता है, तब वह अपनी संतति के ब्रिटिश गोली का शिकार बनने में गर्व समझेगा। लेग तथा अकाल से मरने की अपेक्षा ब्रिटिश की गोली से मरना कहीं उत्तम होगा । महात्मा गांधी का यही उपदेश है। जिस समय मि० जी० के० चेस्टटन के सभापतित्व में एक सभा