ग्यारहवा अध्याय प्रस्थान और स्वागत निमंत्रित प्रतिनिधियों ने अपने-अपने सुबीते के खयाल से प्रस्थान किया। कुछ तो इंपीरियल कान्स देखने की इच्छा से पहले ही चल दिए थे। यह कान्स १ ऑक्टोबर सन् ३० को हुई थी। ब्रिटिश-उपनिवेशों की यह सम्मिलित बैठक प्रतिवर्ष वहाँ होती है। भारत की ओर से सर मुहम्मदशक्ती प्रतिनिधि थे। इस कान्स में भी उपनिवेश और अधिक स्वतंत्रता चाहने थे, और दक्षिण आफ्रिका के प्रधान मंत्री जनरल हरजाग के ऐसा प्रस्ताव रखने पर इंगलैंड का राजनीतिक वायु-मंडल विचलित हो उठा था। लेकिन आतिथ्य-सत्कार, नुशामदें, दावतों और सैर-सपाटों की इतनी अधिक भरमार थी कि वह महत्त्व-पूर्ण प्रस्ताव यों ही पड़ा रह गया । इन दावतों से ऊबकर लंदन के 'डेली हेरल्ड' में मजदूर-दल के प्रमुख सदस्य कमांडर केनवर्दी को एक लेख लिख- कर दावतों का विरोध करना पड़ा था । खैर । कई-कई प्रतिनिधि साथ मिलकर, भिन्न-भिन्न दलों में, भारत से रवाना हुए। जनता ने इन्हें बिदा करते समय कोई उत्साह और प्रेम नहीं प्रदर्शित किया। स्वयं सर सप्र ने इस विषय में कहा था-"हम लोग अपने देशवासियों के उपहास-पात्र बनकर
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