चौदहवां अध्याय अवस्था का ध्यान रखना चाहिए। वह समय बीत गया, जब शासितों की छिपी हुई स्वीकृति की कल्पना कर लेने-भर से काम चल जाता था। नई प्रणाली में निश्चित गति से अग्रसर होनेवाले, जाग्रत् राष्ट्र की इच्छा का विचार करना उचित होगा। विधान में परिवर्तन हम साइमन कमीशन की रिपोर्ट की प्रांतीय स्वाधीनता की सिफारिश से पूरे-पूरे सहमत हैं। भारतीय हित का विचार रखते हुए प्रांतों को जो भी अधिकार दिए जायँ, वे ठीक हैं। पर केंद्रीय ब्रिटिश शासन के फल-स्वरूप जो राष्ट्रीय एकता का भाव बढ़ रहा है, वह कम न होने पावे । केंद्रीय शासन की समस्या के संबंध में हमारी राय यह है कि एक ओर तो संपूर्ण औपनिवेशिक स्वराज्य की राष्ट्रीय मांग और दूसरी ओर कुछ भी प्रतिनिधिक अधिकार न देने को साइमन-रिपोर्ट की सिफा- रिश दोनो ही असंभव हैं। केंद्र की दृढ़ शासन-विधि (Strong Central Govt.) से यह भले ही हो कि स्वेच्छानुसार काम किया जा सकेगा, पर जनता की सम्मति और अनुमति के विना काम करने से निसर्ग-सिद्ध दुर्बलता बनी ही रहेगी। इसके साथ ही यह बात भी स्पष्ट है कि केंद्रीय सरकार कुछ समय तक पार्लियामेंट के सीधे नियंत्रण में रहकर काम करे । पार्लियामेंट का नियंत्रण इस विचार से केंद्रीय सरकार की कार्य-विधि तीन श्रेणियों में बाँटी जा सकती है-प्रथम तो वह श्रेणी, जिसमें पार्लियामेंट
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