पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२११

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पंद्रहवां अध्याय १६३ "इसलिये अनिच्छित सत्य को छिपाने और स्थिति की वास्त- विकता पर परदा डालने की लगातार कोशिशें करने से सिर्फ झूठी उम्मीदें पैदा हो सकती हैं, जिनसे आगे चलकर हमें बहुत दुःख और उलझनों में फंसना पड़ेगा। भारत के विषय में सत्य बात "यह तो हुई इंगलैंड के विषय में। पर भारत के विषय में सत्य बात क्या है ? हमसे कहा जाता है कि भारत का राष्ट्र बदल गया है। परंतु भारत का वातावरण नहीं बदला है, उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। भारत की राजनीतिक संस्थाएँ, वहाँ की जन-संख्या के मुकाबले, उँगली पर गिनी जाने योग्य हैं। उन्होंने पाश्चात्य सिद्धांतों का ग्रहण और प्रचार किया है, जिनका कोई सामंजस्य भारत के जीवन और विचारों से नहीं किया जा सकता । वहाँ साढ़े तीस करोड़ मनुष्यों में से ७० में एक व्यक्ति लिख-पढ़ सकता है। वहाँ ७० के लगभग जातियाँ और इससे भी अधिक अनेक धार्मिक संप्रदाय हैं, जिनमें से अधिकतर परस्पर स्पर्धा और आक्षेप करते रहते हैं। "लॉर्ड रंडोल्फ चचिल के मत से भारत में हमारा राज्य ऐसा है, मानो एक अथाह और विशाल जन-समुद्र पर तेल डाल रक्खा हो, जिससे किसी भी किस्म का आँधी-तूफान अपना प्रभाव उस पर नहीं कर सकता। "भारत से ब्रिटिश अधिकार को हटा लेने का अर्थ यह होगा कि या तो समस्त भारत में हिंदू-राज्य फैल जाय, जिसकी सहा-