१६४ गोल-सभा यता योरप से किराए पर आए हुए फौजी अफसर करें, अथवा भारत फिर उन्हीं भयंकर घरेलू लड़ाइयों में पिस मरे, जो हजारों वर्षों से कलकत्ते में ब्रिटिश-झंडा फहराने से पहले होती थीं। यदि इसे स्वतंत्र कर दिया जाय, तो इसकी चीन-जैसी दुर्दशा हो जायगी, और ३०३ करोड़ जनता घोर कष्ट पावेगी। मैं विश्वास नहीं करता कि ग्रेट ब्रिटेन में हजारों में एक भी ऐसा जिम्मेदार और स्वतंत्र व्यक्ति होगा, जो भारत का पूर्ण ज्ञाता. होकर इन सत्य बातों का विरोध करेगा। "फिर भी हमसे कहा जाता है कि भारत अब बहुत तेजी से. बदल गया है, और आखिर उसने आत्म-सम्मान अनुभव कर लिया है। जाति, संप्रदाय, फिरके, जो सदियों से स्पर्धा करते थे, सब भेद-भाव भुलाकर, मिलकर एक हो रहे हैं, और ब्रिटिश सरकार से संबंध-विच्छेद करना चाहते हैं। इस परिवर्तन का. कारण क्या है ? इसके लिये हम भारतीय प्रजा को बिल्कुल दोष नहीं दे सकते। "इसकी कुल जिम्मेदारी हमारे वर्तमान राजनीतिज्ञों की बुज- दिली और हार खाने की इच्छा है। किसी भी रूप में पिछले कुछ वर्षों से भारत-भर में यह धारणा उन्नत कर दी गई है कि ब्रिटिश-आधिपत्य उठनेवाला है, और एक नवीन शासन- प्रणाली शीघ्र ही बनेगी। एक तरफ तो वे बढ़ी-चढ़ी आज्ञाएँ. निकालते रहे हैं, और दूसरी तरफ़ खेद-प्रकाश कर देते
पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२१२
दिखावट