पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०६ गोल-सभा सब-कमेटी की बैठक हुई। इसमें इस विषय पर बहस हुई कि उक्त शासन-विधान की कार्यकारिणी का उत्तरदायित्व कैसा होना चाहिए। इस पर लॉर्ड शैंकी ने एक भाषण देते हुए कहा कि इंगलैंड के लिये उस प्रस्ताव का करना व्यर्थ है, जो भारत के लिये स्वीकार करने के योग्य नहीं। इसी प्रकार भारत को भी वैसी माँग पेश नहीं करनी चाहिए, जिसे ब्रिटेन इस समय: किसी हालत में नहीं दे सकता। ऐसी स्थिति में काल्पनिक विचारों अथवा आदशों को उपस्थित करना व्यर्थ है। हमें व्यावहारिक और कार्य में परिणत करने योग्य प्रस्तावों पर ही वाद-विवाद करना उचित है, क्योंकि समय बहुत कम है। अस्तु । सदस्यों को साधारण परिस्थिति पर ही बहस करनी चाहिए। जातीय प्रश्न व्यर्थ है आगे चलकर लॉर्ड शैंकी ने कहा कि यहाँ पर जातीय प्रश्नों का प्रसंग छेड़ना अनावश्यक होगा। जब अभिलषित शासन- भवन का निर्माण हो जायगा, तब दोनो जातियाँ उसके भीतर रहने के लिये स्वतः सहमत हो जायँगी। हाँ, इसका ध्यान अवश्य रखना उचित है कि इस प्रकार का जो भवन तैयार हो, उसका संदेह-रूपी बालू की भीत पर नहीं, बरन् सदिच्छा एवं विश्वास-रूपी चट्टान पर अवलंबित रहना नितांत आवश्यकः. है । अर्थ-संबंधी विषय का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि भारत के क्रेडिट (विश्वास) को स्थायी रखना उचित है।