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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२३९

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सोलहवाँ अध्याय २२१. स्वार्थ बहुत गहरा है । अगर देश में अशांति व अराजकता फैलेगी, तो सबसे पहले हमें ही नुकसान उठाना पड़ेगा। भारत में स्थायी शांति-पूर्ण शासन-प्रणाली जब कभी भंग होगी, तब ब्रिटेन की किसी राजनीतिक पार्टी की अपेक्षा उसका प्रभाव हम पर ही अधिक शीघ्रता से होगा, और अधिक घातक होगा।" पटियाला-नरेश के उपरांत स्त्री-सदस्य श्रीमती सुब्बरोयन ने भिन्न-भिन्न सब-कमेटियों के कार्य की प्रशंसा करके कहा-"जो कुछ निर्णय किया गया है, उससे अाशा अवश्य बँधती है, पर अभी निश्चय-पूर्वक कोई सम्मति नहीं दी जा सकती। उन्होंने कहा कि भारत ऐसे किसी भी विधान को स्वीकार नहीं कर सकता, जिसमें स्वाधीन शासन के सिद्धांत-मात्र स्वीकार किए गए हों, पर व्यवहार में ऐसे बंधन रक्खे गए हों, जिनसे वे सिद्धांत कुछ और ही बन जायें। उन्होंने स्त्री-प्रतिनिधियों के प्रति 'किए गए व्यवहार के लिये कृतज्ञता प्रकट की। मिस्टर बेन और लॉर्ड इरविन को खी-जाति के अधिकारों का ध्यान रखने के लिये धन्यवाद दिया, और यह आशा प्रकट की कि भविष्य में भी त्रियों के अधिकारों पर इसी प्रकार विचार रक्खा जायगा।" लॉर्ड पोल ने अनुदार-दल की ओर से कहा कि गोल-सभा की बातचीत से यह मूल्यवान् लाभ अवश्य हुआ कि विलायत की जनता को भारत संबंधी जानकारी बढ़ी, और उसके विचार बदले । शायद भारत की जनता भी इससे इसी प्रकार लाभा- न्वित हुई हो । सभा का सबसे प्रमुख काम यह हुआ कि