पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२४५

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सोलहवां अध्याय २२७ मेरा ही अपराध है । प्रतिबंध शब्द बड़ा भद्दा है । यह डरा- वना है। प्रतिबंधों को मैं तीन श्रेणियों में विभक्त करता हूँ। प्रथम प्रतिबंध यह है कि जो वाइसराय या गवर्नर या किसी शासक के विशेषाधिकारों के रूप में दिया गया। वह संसार के हर एक स्वाधीन शासन-विधान में रहता है। "मेरे भारतीय दोस्तो, आप चाहें किसी ढंग से पूरी स्वाधीनता का शासन-विधान भी बनावें, तो भी आपको ऐसा प्रतिबंध तो लगाना ही पड़ेगा। (तालियाँ) दूसरे प्रकार के प्रतिबंध के दो हिस्से हैं। पहला हिस्सा यह है कि आपकी ओर से भारत- सचिव या सरकार ने जो इराक़रनामे कर रक्खे हैं, उन्हें नए शासन-विधान में भी कायम रक्खा जायगा। दृष्टांत के लिये आर्थिक और सरकारी नौकरियों के संबंध में इक़रार पत्रों को ले लीजिए। हम इन वायदों की रक्षा इसलिये नहीं करना चाहते कि हमें रुपया चाहिए, हम तो इन्हें सिर्फ इसलिये चाहते हैं कि उनके विना संसार में भारत की प्रतिष्ठा कायम नहीं रह सकती। कई ऐसे मामलों में भी हमें प्रतिबंध डालना पड़ेगा, जिनका संबंध केवल भारत से ही नहीं है। अब देर से न डरिए "ऐसे मामलों के ठीक होते देर लगेगी। आप देर से न डरिए। मैं जानता हूँ, आप थक चुके हैं । मैं जानता हूँ, आपने बहुत प्रतीक्षा की है, परंतु जब हम बहुत शीघ्रता से जाना चाहते हैं,