पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२५९

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सत्रहवां अध्याय २४१ गोद में मरूँगा । मुझे अंतिम निद्रा पराधीन देश में नहीं, स्वतंत्र देश में लेनी पड़े। इस महापुरुष को खोकर महात्मा गांधी ने कहा था-"मैं विधवा से भी अधिक असहाय हो गया ।" अस्तु । मोतीलालजी तो चल ही दिए, इधर वाइसराय और महात्मा गांधी में दिल्ली में संधि-चर्चा छिड़ी, जिसकी तरफ संसार-भर का ध्यान आकर्षित हुआ। चर्चिल के शब्दी में महात्मा गांधी विद्रोही, अधनंगा फकीर' बड़ी निर्भीकता से सम्राट के प्रतिनिधि से, बराबरी के तौर पर, मिला। कई दिन तक बातचीत होने के बाद अंत में निश्चय हुआ कि निकट भविष्य में, भारत और इंगलैंड में, फिर एक गोल-सभा हो, और उसमें कांग्रेस की शर्तों पर विचार किया जाय । इस काम के होने तक सरकार की ओर से दमन बंद किया जाय, और कांग्रेस की तरफ से सत्याग्रह-युद्ध स्थगित कर दिया जाय । गत ४ एप्रिल को दिन के बारह बजे लॉर्ड इरविन और महात्मा गांधी के संधि-पत्र पर हस्ताक्षर हो गए। यह अस्थायी संधि- पत्र इस प्रकार था- (१) महात्मा गांधी और हिज़ एक्सिलेंसी दि वाइसराय में जो बातचीत हुई है, उसमें यह प्रबंध किया गया है कि सवि- नय कानून-भंग-आंदोलन स्थगित कर दिया जाय, और सम्राट की सरकार की मंजरी से भारत सरकार और प्रांतीय सरकारें कुछ कार्य करें। (२) विधान-संबंधी समस्या के लिये कहा गया है कि गोल-