तोसरा अध्याय शांति थी। देश ने इसे धीरे-धीरे समझा, और वह एकाएक उसके अनुकूल हो गया। इस महायुग के संचालक महात्मा गांधी और मोतीलाल नेहरू हुए। इस नीति में महत्त्व-पूर्ण बात अहिंसा और अक्रोध है, और वह ठीक उन्हीं अर्थों में, जिन अर्थों में प्राध्यात्मवाद में मानी गई है। परंतु देश में उस उच्च नीति को समझनेवाले सब नहीं हो सकते थे। फलतः षड्यंत्र-दल को भी संगठन होता रहा, और वह बाच-बीच में हत्याओं और दूसरे उपद्रवों से ब्रिटिश सभा के प्रति अपना तीव्र रोष प्रकट करता रहा। देश से यह गर्म दल शमन हो, इसलिये महात्मा गांधी ने अपनी नीति को स्थगित और आवश्यकतानुसार मंद किया, और अंत में, सन् तीस में, उन्होंने अतयं रीति से प्रबल संग्राम छेड़ दिया, जिसे सारे संसार को महाशक्तियों ने आश्चर्य से देखा। इस संग्राम के संचालक महात्मा गांधी-जैसे मनस्वी, मोतीलाल- जैसे धुरंधर राजनीतिज्ञ और जवाहरलाल-जैसे युवक साम्यवादी रहे । तीनो शक्तियों का एक होना अद्भुत घटना थो, और यह युगांतर करनेवाला निग्रही योग था । शोक है, आज इस योग में एक महाग्रह का वियोग हो गया ! जो हो, इस संग्राम में देश के प्रायः सभी प्रमुख नेता और अति प्रतिष्ठित पुरुषों ने भी योग दिया और लगभग २५ हजार महिलाएँ तथा ५० हजार पुरुष जेलों में हुये हैं। इस महासंग्राम में लॉर्ड इर्विन को तीन ही मास में ऑर्डि-
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