चौथा अध्याय उसे बेटा कर "मैं जो चाहता था, वह कर न सका ; पर जो कुछ भी कर सका हूँ, उसका श्रेय महात्मा गांधी और जेनरल सेक्रेटरी को है । मैं सभापतित्व का चार्ज अपने पुत्र को देता हूँ।। पर फारसी कहावत है कि जो काम बाप नहीं कर सकता, दिखाता है । मुझं विश्वास है, जवाहरलाल मुझसे अच्छा काम करेंगे । यह समय मुझ-जैसे बुड्ढों के लिये नहीं है। प्रत्युत यह युग जवानों के लिये है।" इसके बाद आपने कहा- मैं जवाहरलाल नेहरू को सभा- पति का आसन ग्रहण करने की आज्ञा देता हूँ, और विश्वास दिलाता हूँ कि मैं उनको श्राज्ञा का सदैव विनय-पूर्वक पालन करूँगा।" (इस पर खूब हर्षध्वनि हुई।) पं० जवाहरलाल नेहरू ने नम्रता-पूर्वक स्थान ग्रहण किया, और उनकी माता तथा सरोजिनी नायडू ने बधाइयाँ दी । इसके बाद आल इंडिया कांग्रेस-कमेटी विषय-निर्वाचिनी बन गई। विषय-निर्वाचिनी-विषय-निर्वाचिनी में वाइसराय के दुर्घटना से बच जाने के उपलक्ष में बधाई देने का प्रस्ताव आया। इस पर एक घंटे तक बहस होती रही । विरोध-पक्ष खूब जोर में बोला, और लोग अधिक हर्षित हुए ; पर अंत में ११७ पक्ष और ६६ विपक्ष मत से प्रस्ताव पास हो गया। इसके बाद महात्मा गांधी ने अपना मुख्य प्रस्ताव पेश करते हुए जो भाषण दिया, उसका सारांश यह है- "मैं और पं० मोतीलाल बहुत प्रयत्न करने पर भी औप
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