पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/५२

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४२ गोल-सभा क्या-क्या किया है, इसका विवरण भारत-मंत्री ने बताया है। उसका सार यह है कि कुछ भारतीयों को बड़े-बड़े पद देना और शेष को दमन-चक्र में पीस डालना। "संकोर्ण राष्ट्रीयता से संसार ऊब गया है, और वह अब राष्ट्रों के व्यापक सहयोग और पारस्परिक निर्भरता को तलाश में है। हम भी इसी उच्च आदर्श को सामने रखकर स्वाधीनता की घोषणा करने जा रहे हैं। पर इस कार्य में जन-साधारण का शरीक होना बहुत जरूरी है । साथ ही उनका शांति पूर्ण होना भा जरूरी है । सुघटित विद्रोह को बात दूसरी है। "असहयोग-आंदोलन में विविध बहिष्कार की चर्चा थी।सेना में नौकरी न करने और टैक्स देने से इनकार करने की भी बात थी। कौंसिल-बहिष्कार के संबंध में मैं अधिक कुछ न कहूँगा। पर इन नकली कौंसिलों ने हममें कैसी नीति-भष्टता ला दो है, और हममें से कितने उच्च पुरुषों को ये जाल में फँसाए हुए हैं, यह प्रकट है। कौंसिल छोड़ने से हमें आपको पूर्ण शक्ति को काम में लगाने का अवसर मिलेगा, जिसका स्वरूप टैक्स न देना और हड़- ताल करना होगा। इसके सिवा विदेशी-बहिष्कार हम खास तौर पर शुरू करेंगे । हमारा कार्यक्रम राजनीतिक और आर्थिक, दोनो दृष्टियों से होना चाहिए। हम ब्रिटिश सरकार से कोई संबंध न रक्खेंगे। हम उस कर्ज के चुकाने के जिम्मेवार भी नहों, जो इंगलैंड ने भारत के नाम पर ले रक्खा है। "मैं अंत में सबसे खुला षड्यंत्र करने की अपील करता हूँ।"