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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/६४

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गोल-सभा गई। केवल इसलिये कि में इस्तीफा दे दूँ, और भारत के शत्रुओं को यह कहने का अवसर मिले कि कोई भारतीय उत्तर- दायित्व पूर्ण स्थान पर बैठाने के योग्य नहीं । सरकारी अफसर चुपचाप सब सह रहे थे, क्योंकि सिवा वोट ऑफ सेंसर के और कोई तरीका मुझसे पिंड छुड़ाने का न था, और इस तरीके से उनको जीत अनिश्चित थी। कमजोर मनवाला आदमी कभी का इस्तीफा दे चुका या उनकी अधीनता स्वीकार कर चुका होता । परंतु मैंने इतनी दृढ़ता से अपने अधिकारों और कर्तव्य को निभाया, जिसके लिये मैं साहस-पूर्वक कह सकता हूँ, संसार की किसो भी एसेंबली को गर्व होना चाहिए । इन सब कठि- नाइयों और विरोध के होते हुए भो सभापति का अधिकार और मान किसी हद तक बढ़ ही गए। मुझे किसी व्यक्ति विशेष से द्वेष नहीं, परंतु मैं उस शासन- नीति का अंत चाहता हूँ, जिसमें इस प्रकार की कुत्सित चेष्टाएँ आसानी से की जा सकती हैं। इससे शासक और शासित दोनो का भला होगा । मैं अब भी सभापति को कुर्सी को न छोड़ता, यदि मैं अपने देश की सेवा कर सकता । परंतु वर्तमान स्थिति में एसेंबली के सभापति-पद से ऐसो आशा करना व्यर्थ है । जब से पंडित मालवीय आदि ने इस्तीफे पेश कर दिए, तब से एसेंबली से प्रतिनिधि-सत्ता जाती रही । मैं समझता हूँ कि ऐसी अवस्था में एसेंबली का सभापति वोट्स की स्वतंत्रता को रक्षा नहीं कर सकता। इसके बाद एसेंबलो केवल नियमों का रजि-