पाँचवाँ अध्याय इसके बाद मैं इंगलैंड गया, और वहाँ भी किंगजॉर्ज, लॉर्ड बर्कन हैड तथा अन्य जिम्मेदार आदमियों को भी मैंने यही जताने का प्रयत्न किया कि भावी सुधारों में भारतवासी शीघ्र ही उत्तरदायित्व पूर्ण शासन से कम किसी भी शासन को स्वीकार न करेंगे। और, इसमें विलंब करना दोनो राष्ट्रों के पारस्परिक संबंध के लिये हानिकारक होगा। मेरे सामने ऐसा करने में कठिनाइयाँ रक्खी गईं। मैंने कहा, जहाँ इच्छा है, वहाँ उपाय भी हो सकता है। मैंने यह भी चेतावनी दी कि यदि कांग्रेस की बात न मानी गई, तो १९२० से ज्यादा जोरदार आंदोलन का सामना सन् ३० में अँगरेज़ सरकार को करना होगा। मेरे भारत में लौट आने पर दुर्भाग्य से मुझे यह सुनना पड़ा कि एक गोरा-कमीशन साइमन कमीशन के नाम से बैठाया गया है । देशवासियों ने उसका पूर्ण बॉयकॉट किया । मैंने भी उस समय त्याग-पत्र देकर देशवासियों के साथ कंधा भिड़ाना अपना फर्ज समझा, पर आपके एक मित्र के तौर पर त्याग-पत्र न देने की सलाह देने से मैंने विचार छोड़ दिया। बॉयकॉट- आंदोलन की सफलता देखकर आपको आँखें खली, और आपको कांग्रेस के प्रभाव का पता चला । आप इसीलिये इंगलैंड गए। मेरे अपने राजनीतिक विचार सबको मालूम हैं। भारतवासी लोग सामान्यतया अँगरेजों पर विश्वास नहीं करते, तथापि जब आप इंगलैंड को रवाना होने लगे, तो आपसे बातचीत
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