गोल-सभा कात में आपको बता चुका हूँ। मैं यह पत्र आपको अधिकारी के रूप में नहीं लिख रहा, बल्कि अपने सच्चे मित्र के तौर पर लिख भारत स्वतंत्रता प्राप्त करने पर तुला हुआ है। एक अँगरेज़ इस बात को समझ भी नहीं सकता कि किस प्रकार स्वतंत्रता के भूखे भारतवासी जेलखानों को तीर्थ-स्थान समझ रहे हैं। आपके वायसराय बनकर आने के पहले दिन से मैं आपको भारत की असली अवस्था समझाने का प्रयत्न करता रहा हूँ कि किस प्रकार १९२० में असहयोग-आंदोलन प्रारंभ हुआ, और किस प्रकार वह अपने उद्देश्य को लगभग पूरा करने से पहले ही समाप्त हो गया । मने श्रापको कांग्रेस तथा महात्मा गांधी का देशवासियों पर जो बड़ा प्रभाव है, वह बताकर यह चाहा कि महात्माजी से मिलकर आप भारतीय समस्याओं का उचित प्रतिकार करें। आप उस समय अजनबी थे। बाद में आप अपने अँगरेज़ सलाहकारों तथा देश के विभिन्न राजनीतिक विचारवाले पुरुषों से मिलते रहे, पर कांग्रेस का कोई आदमी आपसे नहीं मिला । इससे शायद आप कांग्रेस तथा महात्मा गांधी के बारे में यह खयाल करने लगे कि इनका लोगों पर कोई खास प्रभाव नहीं। आप पर इस प्रकार गलत प्रभाव डाले गए। मैने आपको पूरी तरह यह समझाया कि महात्माजी शीघ्रता से देशव्यापी सत्याग्रह-आंदोलन शुरू करेंगे, और उस समय दमन-चक्र चलाना आपके लिये ठोक न होगा।
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