भूमिका 'गोल-सभा' की भूमिका में, उचित तो यह था कि इस बात पर प्रकाश डाला जाय कि उसका वास्तविक महत्व क्या है। परंतु ब्रिटिश राजनीति की यह एक सबसे पेचीली और सबसे अधिक लुभाने- वाली घटना है ! अब देखना यह है कि भारत इसके मोह में पड़कर मुँह की खाता है या अपनी राजनीतिज्ञता का सच्चा परिचय देता है। पाठकों को यह तो समझ में आ ही गया होगा कि इस गोल-सभा में जो सबसे गोल बात कही गई है, वह संरक्षण नीति के संबंध की । वह संरक्षण नीति भारत के हित की दृष्टि से हो, यह महात्मा गांधी की हठ है, और भारत तथा इंगलैंड की हित की दृष्टि से हो, यह ब्रिटिश राजनीतिज्ञों का दृष्टिकोण है । शाब्दिक दृष्टि से यह बहुत ही साधारण-सी बात मालूम होती है, पर हम कहे देते हैं कि यदि भविष्य गोल-सभा भंग हुई, तो इसी महत्त्वपूर्ण प्रश्न पर भंग होगी। और जहाँ तक हमें विश्वास है, यह निश्चय है कि इंगलैंड कभी इतमा उदार नहीं है कि वह केवल भारत के हित के लिये सिरदर्दी मोल लेगा। सारे संसार के राजनीतिज्ञ इस समय एक भयानक भूल कर रहे हैं, यदि वे यह समझते हैं कि गोल-सभा के निर्णयों से आशान्वित होकर महात्मा गांधी ने ब्रिटेन की सरकार से सुलह करने के लिये इतना झुक- कर हाथ बढ़ाया है। महात्मा गांधी की गूढ़ मनोवृत्ति तो सिर्फ यह है कि ब्रिटेन की सर- कार भारत के जन-बल और अहिंसा-आंदोलन की शक्ति को बहुत कुछ समझ गई है और वह सुलह की इच्छा रखती है। महात्म
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