पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/७७

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छठा अध्याय ६७ बाद तो ऐसी अनेक घटनाएँ घट चुकी हैं, जिनसे ब्रिटिश-राज- नीति का रुख साफ़ ही जाहिर हो जाता है। हिंदुस्थान को पीस डालनेवाला तंत्र यह बात रोजरोशन की तरह साफ जाहिर है कि जिन राज- नीतिक परिवर्तनों से भारत के साथ इंगलैंड के व्यापार को जरा भी नुकसान पहुंचने की संभावना हो, और भारत के साथ इंगलैंड के आर्थिक लेन-देन के औचित्य-अनौचित्य की गहरी छान-बीन के लिये एक निष्पक्ष पंचायत मुकर्रर करनी पड़े, वैसे राजनीतिक हेर-फेर होने देने की नीति अख्तियार करने की ओर ब्रिटिश राजनीतिज्ञों का जरा भी रुख नहीं पाया जाता। पर अगर हिंद को चूसते रहनेवाले इस तर्जे अमल का खात्मा करने का कोई इलाज न किया गया, तो हिंद की बरबादी की चाल रोज-बरोज़ तेज ही होनेवाली है। आपके अर्थ-सचिव या खजांची कहते हैं कि १८ पेंस की विनिमय की दर तो विधि की लकीर की तरह अमिट है। इस तरह क़लम के एक इशारे से भारतवर्ष के करोड़ों रुपए बाहर खिंचे चले जाते हैं । और जब इस और ऐसी दूसरी बहुतेरी विधि की लकीरों को मेटने के लिये सत्याग्रह या सवि- नय कानून-भंग की आजमाइश करने का गंभीर प्रयत्न शुरू किया जाता है, तो आप भी धनवानों और ज़मींदारों वगैरा से यह अनुरोध किए विना नहीं रहते कि वे देश में अमन-कानून की रक्षा के लिये ऐसे आंदोलनों को कुचलने में आपकी मदद