लगन गोल-सभा करें। लेकिन आपके इस अमन-कानून के भार से दबकर भारत का सत्यानाश हो रहा है। जो लोग जनता के नाम से काम कर रहे हैं, वे अगर आजादी के वजूहात को-स्वाधीनता की रट के उद्देश्य को साफ तौर से न समझे, और अपनी बात को आम लोगों के सामने न रखते रहें, तो अंदेशा यह है कि जिनके लिये आजादी चाही जाती है, और हासिल करने के लायक है, उन रात-दिन एड़ी-चोटी का पसीना एक करनेवाले करोड़ों बेजबानों के लिये यह आजादी इतने बोझ से लदी हुई-दबी हुई मिलेगी कि उनके लिये उसका काई मूल्य ही न रहेगा । इसीलिये इधर कुछ दिनों से मैं लोगों को आजादी का -स्वतंत्रता का सच्चा मतलब समझा रहा हूँ। अब इस संबंध की कुछ खास बातें आपके सामने पेश करने का साहस करता हूँ। सच्ची आज़ादी किसमें है ? जिस मालगुजारी से सरकार को इतनी अधिक आमदनी होती है, उसी के भार से रिया का दम निकला जा रहा है। स्वतंत्र भारत को इस नोति में बहुत कुछ हेर-फेर करना होगा। जिस स्थायी बंदोबस्त की तारीफ के पुल बाँधे जाते हैं, उससे सिर्फ मुट्ठी-भर धनवान् जमींदारों को ही फायदा पहुँचता हैआम रिया को नहीं। इसीलिये मालगुजारी को बहुत-कुछ घटाने की जरूरत है। यही नहीं, बल्कि रैयत के भले को ही स्वास
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