७२ गोल-सभा में दे डालते हों। पर जिस राज्य-प्रणाली ने ऐसो खर्चालो व्यवस्था बना रक्खो है, उसे तुरंत तिलांजलि दे देना ही उचित है। जो दलील आपकी तनख्वाह के लिये ठीक है, वही सारे राज्यतंत्र पर लागू होतो है। थोड़े में बात यह कि जब राज्य-प्रबंध के खर्च में बहुत ज्यादा कमो कर दी जायगो, तभो राज्य की आमदनी में भी बहुत कुछ कमो की जा सकेगो, और यह तभी हा सकता है, जब कि राज-काज को सारो नोति ही बदल दी जाय । इस तरह का परिवर्तन विना स्वतंत्रता के हो नहीं सकता । मेरो राय में इन्हीं भावों से प्रेरित होकर ता० २६ जनवरी के दिन लाखों ग्रामवासी स्वातंत्र्य-दिवस मनाने के लिये की गई सभाओं में अपने आप, सहज हो, शामिल हुए थे। उनके मन तो स्वाधीनता का मतलब उक्त कुचल डालनेवाले बोसों से छुटकारा पाना है। इंगलैंड जिस तरह इस देश को लूट रहा है, सारा हिंदुस्थान उसका एक स्वर से विरोध कर रहा है, तो भी मैं देखता हूँ, इंगलैंड का कोई भी बड़ा राजनीतिक दल इस लूट को बंद करने के लिये तैयार नहीं है। अहिंसा ही यम-पाश से छुड़ा सकती है पर भारतीय जनता को जिंदा रखने और अन्न की कमी के कारण धीरे-धीरे होनेवाले उसके विनाश को अटकाने के लिये शीघ्र ही कोई-न-कोई इलाज तो हूँढ़ ही निकालना होगा। सिवा इसके और कोई चारा ही नहीं। आपके द्वारा प्रस्तावित
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