छठा अध्याय सभा वह इलाज नहीं । दलीलों से बुद्धि को विश्वास कराने का अब कोई सवाल ही नहीं रहा है। अब तो सिर्फ दो परस्पर विरोधी ताक़तों की मुठभेड का सवाल ही बाक़ी रहता है। उचित हो या अनुचित, इंगलैंड तो अपनो पाशवी ताक़त के बल पर ही भारत के साथ के व्यापार को और भारत में रहे हुए अपने स्वार्थो को बनाए रखना चाहता है । इस यम-पाश से छुटकारा पाने के लिये जितनी ताक़त जरूरी है, वह ताक़त इकट्ठा करना अब भारत के लिये लाजिमी हो पड़ा है। इसमें तो किसी भी पक्ष को शक नहीं कि हिंदुस्थान में जो हिंसक दल है, भले आज वह असंगठित और उपेक्षणीय हो, फिर भी दिनों-दिन उसका बल बढ़ता जा रहा है, और वह प्रभाव- शाली बन रहा है। उस दल का और मेरा ध्येय तो एक ही है। पर मुझे यकीन है कि हिंदुस्थान के करोड़ों लोगों को जिस आजादी की जरूरत है, वह इनके दिलाए नहीं मिल सकती। इसके अलावा मेरा यह विश्वास दिनों-दिन बढ़ता ही जाता है कि शुद्ध अहिंसा के सिवा और किसी भी तरीके से ब्रिटिश-सर- कार की यह संगठित हिंसा अटकाई नहीं जा सकेगी। बहुतेरे लोगों का यह खयाल है कि अहिंसा में कार्य-साधक शक्ति नहीं होती। यद्यपि मेरा अनुभव एक खास हद तक हो महदूद रहा है, तो भी मैं यह जानता हूँ कि अहिंसा में जबर्दस्त कार्य-साधक शक्ति है। ब्रिटिश-सल्तनत की संगठित हिंसा-शक्ति और देश के हिसक दल की असंगठित हिंसा-शक्ति के मुकाबले यह
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