पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/१३०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१२६
शील-निरुपण और चरित्र-चित्रण

वाल्मीकि ने राम के वनवास की आज्ञा पर लक्ष्मण के महा- क्रोध का वर्णन किया है। पर न जाने क्यों वहाँ तुलसीदासजी इसे बचा गए हैं।

चित्रकूट में अपनी कुटिलता का अनुभव करती हुई कैकेयी से राम बार बार इसलिये मिलते हैं कि उसे यह निश्चय हो जाय कि उनके मन में उस कुटिलता का ध्यान कुछ भी नहीं है और उसकी ग्लानि दूर हो बार बार उसके मन में यह बात जमाना चाहते हैं कि जो कुछ हुआ, उसमें उसका कुछ भी दोष नहीं है। अपने साथ बुराई करनेवाले के हृदय को शांत और शीतल करने की चिंता राम के सिवा और किसका हो सकती है? दूसरी बात यह ध्यान देने की है कि राम का यह शील-प्रदर्शन उस समय हुआ, जिस समय कैकेयी का अंत:करण अपनी कुटिलता का पूर्ण अनुभव करने के कारण इतना द्रवीभूत हो गया था कि शील का संस्कार उस पर लिये जम सकता था। गोस्वामीजी के अनुसार हुआ भी ऐसा ही——

कैकेयी जी लै जियति रही।

तो लै बात मातु से मुंह भरि भरत न भूलि कही।
मानी राम अधिक जननी तें, जननिहु गॅस न गही॥

इतने पर भी कहीं गाँस रह सकती है?

गार्हस्थ्य जीवन के दांपत्य भाव के भीतर सबसे मनोहर वस्तु है उनकी 'एक भार्या' की मर्यादा। इसके कारण यहाँ से वहाँ तक जिस गौरवपूर्ण माधुर्य का प्रसार दिखाई देता है, वह अनिर्वचनीय है। इसको उपयोगिता का पक्ष दशरथ के चरित्र पर विचार करते समय दिखाया जायगा।

भक्तों का सबसे अधिक वश में करनेवाला राम का गुण है शरणा- गत की रक्षा। अत्यंत प्राचीन काल से ही शरण-प्राप्त की रक्षा करना