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गोस्वामी तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीभारतवर्ष में बड़ा भारी धर्म माना 'की प्रसिद्धि सारे सभ्य जगत् में थी। सिकंदर से हारकर पारस का सम्रा द्वारा जब भाग रहा था, तब उसके तीन साथी सरदारों ने विश्वासघात करके उसे मार डाला। उनमें से एक शकस्थान (सीस्तान) का क्षत्रप वरजयंत था। जब सिकंदर ने दंड देने के लिये इन तीनों विश्वासघातियों का पीछा किया, तब वरजयंत ने भारतवासियों के यहाँ आकर शरण ली और बच गया। प्राचीन यहूदियों के एक जत्थे का गांधार और दक्षिण में शरण पाना प्रसिद्ध है। इस्लाम की तलवार के सामने कुछ प्राचीन पारसी जब अपने आर्य-धर्म की रक्षा के लिये भागे तब भारतवर्ष ही की ओर उनका ध्यान गया; क्योंकि शरणागत की रक्षा यहाँ प्राण देकर की जाती थी। अपनी हानि के भय से शरणागत का त्याग बड़ा भारी पाप माना जाता है- सरनागत कहँ जे तजहिं, निज अनहित अनुमानि । तं नर पावर पाप-मय, तिनहिं बिलेोकत हानि ।। शरणागत की रक्षा की चिंता रामचंद्र के हृदय से दारुण शोक के समय में भी दूर न हुई। सामने पड़े हुए लक्ष्मण को देखकर वे विलाप कर रहे हैं- मेरो सब पुरुषारथ थाको । बिपति-बटावन बंधु-बाहु बिनु करौं भरोसो काको सुनु सुग्रीव ! सचिहू मो सन फेरथो बदन बिधाता । ऐस समर समर-संकट है तज्यो लपन सेो भ्राता । गिरि-कानन जैहैं साखा-मृग, हैपुनि अनुज-संघाती। (हे कहा विभीषन की गति, रही सोच भरि छाती ।। राम के चरित्र को इस उज्ज्वलता के बीच एक धब्बा भी दिखाई देता है। वह है बालि को छिपकर मारना। वाल्मीकि और तुलसी. दासजी दोनों ने इस धब्बे पर कुछ सफेद रंग पोतने का प्रयत्न . ?