पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/१४६

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शील-निरूपण और चरित्र-चित्रण १४५ होगा, तो बहुत कम । जल्दी उत्तर न देने से यह सूचित होता है कि जो बात वह कहना चाहती है. वह कैकेयो के लिये बिलकुल नई है, अत: उसे सहसा नहीं कह सकती। किस ढंग से कहे, यह सोचने में उसे कुछ काल लग जाता है। इसके अतिरिक्त किसी के सामने अब तक न प्रकट किए गए दु:ख के वेग का भार भी दबाए हुए है। इतने में "गाल बड़ तोरे" इस वाक्य से जी की बात धीरे धीरे बाहर करने का एक रास्ता निकलता है। वह अपनी वही मुद्रा कायम रखती हुई कहती है- कत सिख देइ हमहि कोर माई । गाल करब केहि कर बलु पाई ? "किसका बल पाकर गाल करूँगो ?" इसका मतलब यही है कि मुझे एक तुम्हारा ही बल ठहरा - मैं तुम्हें चाहती हूँ और तुम मुझे चाहती हो-सा मैं देखती हूँ कि तुम्हारी यहाँ कोई गिनती ही नहीं है। क्रोध, द्वेष आदि के उद्गार के इस प्रकार क्रम क्रम से निका- लने की पटुता स्त्रियों में स्वाभाविक होती है, क्योंकि पुरुषों के दबाव में रहने के कारण तथा अधिक लज्जा, संकोच के कारण ऐसे भावों के वेग को एक-बारगी निकालने का अवसर उन्हें कम मिलता है। रानी पूछती है कि “सब लोग कुशल से तो हैं ?" इसका उत्तर फिर उसी प्रणाली का अनुमरण करती हुई वह देती है- रामहिं छाडि कुसल केहि आजू ? जि.हि जनेसु देइ जुवराज ॥ भएउ कौमिलहि बिधि अति दाहिन । देखत गरब रहत उर नाहिंन । किसी को क्रमश: अपनी भाव-पद्धति पर लाना, थोड़ा-बहुत जिसे कुछ भी बात करना आता है, उसे भी आता है। जिस प्रकार अपनी विचार-पद्धति पर लाने के लिये क्रमश: प्रमाण पर प्रमाण देते जाने की आवश्यकता होती है, उसी प्रकार क्रमशः किसी के हृदय को किसी भाव-पद्धति पर लाने के लिये उसके अनुकूल मनो- विकार उत्पन्न करते चलने की आवश्यकता होती है। राम के प्रति १०