उक्ति-वैचित्र्य I have my dying to do. लोग मैत्री और प्रीति को बड़े इत्मिनान के साथ धीरे धीरे करते हैं, पर एक जरा सी बात पर उसे चट तोड़ देते हैं- "थोरेहि कोप कृपा पुवि थोरेहि, बैठि के जोरत तोरत ठाढ़े" । यहाँ 'बैठि' और 'ठाढ़े दोनों का लक्ष्यार्थ ध्यान देने योग्य है। इसी प्रकार की एक और लक्षणा देखिए- "बड़े ही समाज आज राजनि की लाजपति हाँकि श्रीक एक ही पिनाक छीनि लई है"। 'उपादान लक्षणा' के उदाहरण हिदी में कम मिलते है। देखिए, उसका कैसा चलता उदाहरण इस दोहे में है- तुलसी बैर सनेह दोउ रहित बिलोचन चारि । बोलचाल में बराबर आता है कि 'प्रेम अंधा होता है। एक स्थान पर गोस्वामीजी एक ही क्रिया के दो ऐसे कर्म लाए हैं जो परस्पर अत्यंत विजातीय होने के कारण बहुत ही अनूठे लगते हैं। हनुमान्जी पर्वत लिए हुए राम के पास आ पहुँचते हैं; इस पर- 'बेग बल साहस सराहत कृपा-निधान, भरत की कुसल अचल लाए चलिके"। भरत की कुशल और पर्वत दोनों लाए। इसमें चमत्कार दोनों वस्तुओं के अत्यंत विजातीय होने के कारण है। अँगरेज उपन्यास- कार डिकेंस (Dickens) को ऐसे प्रयोग बहुत अच्छे लगते थे; जैसे, "इस बात ने उसकी आँखों से आंसू और जेब से रूमाल निकाल दिया-This drew tears from her eyes and handkerchief from her pocket.
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