पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/१८६

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राम सत्य-संकल्प प्रभु सभा काल-बस तोरि।
मैं रघुबीर सरन अब जाउँ देहु नहि खोरि॥

नीचे की चौपाई——

मर्म बचन जब सीता बोला। हरि प्रेरित लछिमन-मन डोला॥

में जो लिंग की गड़बड़ी दिखाई पड़ती है वह 'बोला' को 'बोल' मान लेने से और ल' की दीर्घता को चौपाई के पदांत के कारण ठहराने से दूर हो जाती है। अवधी मुहावरे में 'बोल' का अर्थ होगा 'बोलती है', जैसे 'उत्तर दिसि सरजू बह पावनि' में 'बह' का अर्थ है 'बहती है।

धुंधरारी ल लटक मुख ऊपर, कुंडल लाल कपोलन की।
निवछावरि प्रान करै तुलसी, बलि जाउँ लला इन बालन की॥

वाक्यों की ऐसी अव्यवस्था एक-आध जगह कोई भले ही दिखा दे, पर वह अधिक नहीं पा सकता। सर्वत्र वही परिष्कृत गठी हुई सुव्यवस्थित भाषा मिलेगी।

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