इस दल का लोक-विरोधी स्वरूप गोस्वामीजी ने खूब पह- चाना। समाज-शास्त्र के आधुनिक विवेचकों ने भी लोक-संग्रह और लोक-विराध की दृष्टि से जनता का विभाग किया है। गिडिंग के चार विभाग ये हैं—लोक-संग्रही, लोक-बाह्य, अलोकोपयोगी और लोक-विरोधी*। लोकसंग्रही वे हैं जो समाज की व्यवस्था और मर्यादा की रक्षा में तत्पर रहते हैं और भिन्न भिन्न वर्गों के परस्पर संबंध को सुखावह और कल्याण-प्रद करने की चेष्टा में रहते हैं। लोक-बाब वे हैं जो केवल अपने जीवन-निर्वाह से काम रखते हैं और लोक के हिताहित से उदासीन रहते हैं। अलोकोपयोगी वे हैं जो समाज में मिले तो दिखाई देते हैं, पर उसके किसी अर्थ के नहीं होते; जैसे आलसी और निकम्मे जिन्हें पेट भरना ही कठिन रहता है। लोक-विरोधी वे हैं जिन्हें लोक से द्वेष होता है और जो उसके विधान और व्यवस्था को देखकर जला करते हैं। गिडिंग ने इस चतुर्थ वर्ग के भीतर पुराने पापियों और अपराधियों को लिया है। पर अपराध की अवस्था तक न पहुँचे हुए लोग भी उसके भीतर आते हैं जो अपने ईर्ष्या-द्वेष का उद्गार उतने उग्र रूप में नहीं निकालते, कुछ मृदुल रूप में प्रकट करते हैं।
अशिष्ट संप्रदायों का औद्धत्य गोस्वामीजी नहीं देख सकते थे।
इसी औद्धत्य के कारण विद्वान् और कर्मनिष्ठ भी भक्तों को उपेक्षा
की दृष्टि से देखने लगे थे, जैसा कि गोस्वामीजी के इन वाक्यों से
प्रकट होता है——
कर्मठ कठमलिया कहैं ज्ञानी ज्ञान-बिहीन।
The true Social Classes are—the Social, the
non-Social, the pseudo-Social and the anti-Social-Giding's “ The Principles of Sociology."