मंगलाशा पर इस भीषण दृश्य से गोस्वामीजी निराश नहीं होते। सच्चे भक्त के हृदय में नैराश्य कहाँ ? जिसे धन की शक्ति पर, धन-स्वरूप भगवान् की अनंत करुणा पर पूर्ण विश्वास है, नैराश्य का दुःख उसके पास नहीं फटक सकता। अतः गोस्वामीजी रामराज्य स्थापन करने के लिये राम से बिनती करते हैं- "दीजै दादि देखि नातो बलि मही मोद-मंगल-रितई है।" प्रार्थना के साथ ही अपने विश्वास के बल पर वे मान लेते हैं कि प्रार्थना सुन ली गई, "रामराज्य' हो गया. लोक में फिर मंगल छा गया- भरे भाग अनुराग लेोग कहै राम अवध चितवनि चितई है। विनती सुनि सानंद हेरि हँसि करुणा-बारि भूमि भिजई है ॥ रामराज भयो काज सगुन सुभ राजा राम जगत-बिजई है । समरथ बड़ा सुजान सुसाहब सुकृत-सेन हारत जितई है। लोक में जब जब सुकृत की सेना हारने लगेगी. अधर्म की सेना प्रबल पड़ती दिखाई देगी, तब तब भगवान् अपनी शक्ति का, का, लोक-बल का प्रकाश करेंगे, ऐसा विश्वास सच्चे भक्त को रहता है। अत: आशा और आनंद से उसका हृदय परिपूर्ण रहता है। धर्म-बल .
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