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पृष्ठ:गोस्वामी तुलसीदास.djvu/९२

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तुलसी की भावुकता

प्रबंधकार कवि की भावुकता का सबसे अधिक पता यह देखने से चल सकता है कि वह किसी आख्यान के अधिक मर्मस्पर्शी स्थलों को पहचान सका है या नहीं। राम-कथा के भीतर ये स्थल अत्यंत मर्मस्पर्शी हैं—राम का अयोध्या-त्याग और पथिक के रूप में वन-गमन; चित्रकूट में राम और भरत का मिलन; शबरी का आतिथ्य: लक्ष्मण को शक्ति लगने पर राम का विलाप; भरत की प्रतीक्षा। इन स्थलों को गोस्वामीजी ने अच्छी तरह पहचाना है, इनका उन्होंने अधिक विस्तृत और विशद वर्णन किया है।

एक सुंदर राजकुमार के छोटे भाई और स्त्री को लेकर घर निकलने और वन वन फिरने से अधिक मर्मस्पर्शी दृश्य क्या हो सकता है ? इस दृश्य का गोस्वामीजी ने मानस, कवितावली और गोतावली तीनों में अत्यंत सहृदयता के साथ वर्णन किया है। गीतावली में तो इस प्रसंग के सबसे अधिक पद हैं। ऐसा दृश्य स्त्रियों के हृदय को सबसे अधिक स्पर्श करनेवाला, उनकी प्रीति, दया और आत्मत्याग को सबसे अधिक उभारनेवाला होता है, यह बात समझकर मार्ग में उन्होंने ग्राम-वधुओं का सन्निवेश किया है स्त्रियाँ राम-जानकी के अनुपम सौंदर्य पर स्नेह-शिथिल हो जाती हैं, उनका वृत्तात सुनकर राजा की निष्ठुरता पर पछताती हैं, कैकेयी की कुचाल पर भला-बुरा कहती हैं। सौंदर्य के साक्षात्कार से थोड़ी देर के लिये उनकी वृत्तियाँ कोमल हो जाती हैं, वे अपने को भूल जाती हैं। यह कोमलता उपकार-बुद्धि की जननी है—

"सीता-लषन सहित रघुराई। गाँव निकट जब निकसहि जाई।।
सुचि सर बाल-बृद्ध नर-नारी। चलहितुरत गृह-काज बिसारी॥