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पृष्ठ:गो-दान.djvu/१०२

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गोदान
 


देखते हुए कि कहीं विगड़ न जायँ, हिरन को उठाया। सहसा उसने हिरन को छोड़ दिया और खड़ा होकर बोला -- मैं समझ गया मालि़क, हजूर ने इसकी हलाली नहीं की।

मिर्ज़ाजी ने हॅसकर कहा -- बस-बस, तूने खूब समझा। अब उठा ले और घर चल।

मिर्जा़जी धर्म के इतने पावन्द न थे। दस साल से उन्होंने नमाज़ न पढ़ी थी। दो महीने में एक दिन व्रत रख लेते थे। विलकुल निराहार, निर्जल; मगर लकड़हारे को इस खयाल से जो सन्तोष हुआ था कि हिरन अब इन लोगों के लिए अखाद्य हो गया है, उसे फीका न करना चाहते थे।

लकड़हारे ने हलके मन से हिरन को गरदन पर रख लिया और घर की ओर चला। तंखा अभी तक-तटस्थ से वहीं पेड़ के नीचे खड़े थे। धूप में हिरन के पास जाने का कष्ट क्यों उठाते। कुछ समझ में न आ रहा था कि मुआमला क्या है; लेकिन जब लकड़हारे को उल्टी दिशा में जाते देखा, तो आकर मिर्जा से बोले -- आप उधर कहाँ जा रहे हैं हज़रत!क्या रास्ता भल गये?

मिर्जा़ ने अपराधी भाव से मुस्कराकर कहा -- मैंने शिकार इस ग़रीब आदमी को दे दिया। अब ज़रा इसके घर चल रहा हूँ। आप भी आइए न।

तंखा ने मिर्जा़ को कुतूहल की दृष्टि से देखा और बोले -- आप अपने होश में हैं या नहीं।

'कह नहीं सकता। मुझे खुद नहीं मालूम।'

'शिकार इसे क्यों दे दिया?'

'इसीलिए कि उसे पाकर इसे जितनी खुशी होगी, मुझे या आपको न होगी।'

तंखा खिसियाकर बोले -- जाइए! सोचा था, खूब कबाब उड़ायेंगे, सो आपने सारा मज़ा किरकिरा कर दिया। खैर, राय साहब और मेहता कुछ न कुछ लायेंगे ही। कोई ग़म नहीं। मैं इस एलेक्शन के बारे में कुछ अर्ज करना चाहता हूॅ। आप नहीं खड़ा होना चाहते न सही, आपकी जैसी मर्जी़, लेकिन आपको इसमें क्या ताम्मुल है कि जो लोग खड़े हो रहे हैं, उनसे इसकी अच्छी क़ीमत वसूल की जाय। मैं आपसे सिर्फ इतना चाहता हूॅ कि आप किसी पर यह भेद न खुलने दें कि आप नहीं खड़े हो रहे हैं। सिर्फ इतनी मेहरबानी कीजिए मेरे साथ। ख्वाजा जमाल ताहिर इसी शहर से खड़े हो रहे हैं। रईसों के वोट सोलहों आने उनकी तरफ़ है ही, हुक्काम भी उनके मददगार हैं। फिर भी पबलिक पर आपका जो असर है, इससे उनकी कोर दब रही है। आप चाहें तो आपको उनसे दस-बीस हज़ार रुपए महज़ यह ज़ाहिर कर देने के मिल सकते हैं कि आप उनकी खातिर बैठ जाते हैं....नहीं मुझे अर्ज़ कर लेने दीजिए। इस मुआमले में आपको कुछ नहीं करना है। आप बेफ़िक बैठे रहिए। मैं आपकी तरफ़ से एक मेनिफेस्टो निकाल दूंँगा। और उसी शाम को आप मुझसे दस हज़ार नक़द वसूल कर लीजिए।