'तुमने अपनी आँखों देखा! कब?'
'वही,मैं सोभा को देखकर आया;तो वह सुन्दरिया की नाँद के पास खड़ा था। मैंने पूछा---कौन है,तो बोला,मैं हूँ हीरा,कौड़े में से आग लेने आया था। थोड़ी देर मुझसे बातें करता रहा। मुझे चिलम पिलायी। वह उधर गया,मैं भीतर आया और वही गोबर ने पुकार मचायी। मालूम होता है,मैं गाय बाँधकर सोभा के घर गया हूँ,और इसने इधर आकर कुछ ग्विला दिया है। साइत फिर यह देखने आया था कि मरी या नहीं।
धनिया ने लम्बी साँस लेकर कहा--इस तरह के होते है भाई,जिन्हें भाई का गला काटने में भी हिचक नहीं होती। उपफोह। हीरा मन का इतना काला है!और दाढ़ीजार को मैंने पाल-पोसकर बड़ा किया।
'अच्छा जा सो रह,मगर किसी मे भूलकर भी जिकर न करना।'
'कौन,सबेरा होते ही लाला को थाने न पहुंँचाऊँ,तो अपने अमल वाप की नहीं। यह हत्यारा भाई कहने जोग है! यही भाई का काम है! वह बैगे है,पवका बैरी और बैरी को मारने में पाप नही,छोड़ने में पाप है।'
होरी ने धमकी दी--मैं कहे देता हूँ धनिया,अनर्थ हो जायगा।
धनिया आवेश में बोली--अनर्थ नहीं,अनर्थ का बाप हो जाय। मैं बिना लाला को बड़े घर भिजवाये मानूंँगी नहीं। तीन साल चक्की पिसवाऊंँगी,तीन माल। वहाँ से छूटेंगे,तो हत्या लगेगी। तीरथ करना पड़ेगा। भोज देना पड़ेगा। इम धोखे में न रहें लाला! और गवाही दिलाऊँगी तुमगे,बेटे के सिर पर हाथ रखकर।
उसने भीतर जाकर किवाड़ बन्द कर लिये और होरी बाहर अपने को कोमता पड़ा रहा। जब स्वयं उसके पेट में बात न पची,तो धनिया के पेट में क्या पचेगी। अब यह चुडै़ल माननेवाली नहीं! ज़िद पर आ जाती है,तो किमी की मुनती ही नहीं। आज उमने अपने जीवन में सबसे बड़ी भूल की।
चारों ओर नीरव अन्धकार छाया हुआ था। दोनों बैलों के गले की घण्टियाँ कभी-कभी बज उठती थीं। दस कदम पर मृतक गाय पड़ी हुई थी और होरी घोर पश्चाताप में करवटें वदल रहा था। अन्धकार में प्रकाश की रेखा कहीं नजर न आती थी।
९
प्रातःकाल होरी के घर में एक पूरा हंगामा हो गया। होरी धनिया को मार रहा था। धनिया उसे गालियाँ दे रही थी। दोनों लड़कियाँ बाप के पाँवों में लिपटी चिल्ला रही थीं और गोबर माँ को बचा रहा था। बार-बार होरी का हाथ पकड़कर पीछे ढकेल देता;पर ज्योंही धनिया के मुँह से कोई गाली निकल जाती,होरी अपने हाथ छुड़ाकर उसे दो-चार घूसे और लात जमा देता। उसका बूढ़ा क्रोध जैसे किसी गुप्त संचित शक्ति को निकाल लाया हो। सारे गाँव में हलचल पड़ गयी। लोग समझाने के बहाने तमाशा देखने आ पहुँचे। शोभा लाठी टेकता आ खड़ा हुआ। दातादीन ने डाँटा--यह क्या है होरी,तुम बावले हो गये हो क्या? कोई इस तरह घर की लक्ष्मी पर हाथ छोड़ता है!