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गोदान
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तुम्हें तो यह रोग न था। क्या हीरा की छूत तुम्हें भी लग गयी।

होरी ने पालागन करके कहा--महाराज,तुम इस बखत न बोलो। मैं आज इसकी बान छुड़ाकर तब दम लूंँगा। मैं जितना ही तरह देता हूँ,उतना ही यह सिर चढ़ती जाती है।

धनिया मजल क्रोध में बोली--महाराज तुम गवाह रहना। मैं आज इसे और इसके हत्यारे भाई को जेहल भेजवाकर तब पानी पिऊँगी। इसके भाई ने गाय को माहुर खिलाकर मार डाला। अब जो मैं थाने में रपट लिखाने जा रही हूँ तो यह हत्यारा मुझे मारता है। इसके पीछे अपनी ज़िन्दगी चौपट कर दी, उसका यह इनाम दे रहा है।

होरी ने दाँत पीसकर और आँखें निकालकर कहा--फिर वही बात मुँहसे निकाली। तूने देखा था हीरा को माहुर ग्विलाते?

'तू कसम खा जा कि तूने हीग को गाय की नाँद के पास खड़े नहीं देखा?'

'हाँ,मैंने नहीं देखा,कसम खाता हूँ।'

'बेटे के माथे पर हाथ रख के कसम खा!'

होरी ने गोबर के माथे पर कांँपता हुआ हाथ रखकर काँगते हए स्वर में कहामैं बेटे की कसम खाता हूं कि मैंने हीरा को नाँद के पास नहीं देखा।

धनिया ने जमीन पर थूक कर कहा--धुड़ी है तेरी झुठाई पर। तूने खुद मुझसे कहा कि हीरा चोरों की तरह नाँद के पास खड़ा था। और अब भाई के पक्ष में झूठ बोलता है। थुड़ी है !अगर मेरे बेटे का बाल भी बाँका हुआ,तो घर में आग लगा दूंँगी। मारी गृहस्ती में आग लगा दूंँगी। भगवान,आदमी मुंँह से बात कहकर इतनी बेसरमी मे मुकुर जाता है।

होरी पाँव पटककर बोला--धनिया,गुस्सा मत दिखा, नही बुरा होगा।

'मार तो रहा है,और मार ले। जा,तू अपने बाप का बेटा होगा तो आज मुझे मारकर तव पानी पियेगा। पापी ने मारते-मारते मेरा भुरकस निकाल लिया,फिर भी इसका जी नहीं भरा। मुझे मारकर समझता है मैं बड़ा बीर हूँ। भाइयों के सामने भीगी बिल्ली बन जाता है,पापी कहीं का,हत्यारा।'

फिर वह बैन कहकर रोने लगी--इस घर में आकर उसने क्या नहीं झेला,किस किस तरह पेट-तन नहीं काटा, किस तरह एक-एक लत्ते को तरसी,किस तरह एक-एक पैसा प्राणों की तरह संचा,किस तरह घर-भर को खिलाकर आप पानी पीकर सो रही।और आज उन सारे बलिदानों का यह पुरस्कार! भगवान वैठे यह अन्याय देख रहे हैं और उसकी रक्षा को नहीं दौड़ते। गज की और द्रौपदी की रक्षा करने बैकुण्ठ मे दौड़े थे। आज क्यों नींद में सोये हुए हैं।

जनमत धीरे-धीरे धनिया की ओर आने लगा। इसमें अब किसी को मन्देह नही रहा कि हीरा ने ही गाय को जहर दिया। होरी ने बिलकुल झूठी कसम खाई है,इसका भी लोगों को विश्वास हो गया। गोबर को भी बाप की इस झूठी क़सम और उसके फलस्वरूप आनेवाली विपत्ति की शंका ने होरी के विरुद्ध कर दिया। उस पर जो दातादीन ने डाँट बतायी,तो होरी परास्त हो गया। चुपके से बाहर चला गया,सत्य ने विजय पायी।