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पृष्ठ:गो-दान.djvu/१३०

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गो-दान
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विश्वास नहीं है;पर उनकी वाणी में कुछ ऐसा आकर्षण है कि लोग बार-बार धोखा खाकर भी उन्हीं की शरण जाते हैं।

सिर और दाढ़ी हिलाकर बोले--यह तू ठीक कहती है धनिया! धर्मात्मा लोगों का यही धरम है;लेकिन लोक-रीति का निबाह तो करना ही पड़ता है।

इसी तरह एक दिन लाला पटेश्वरी ने होरी को छेड़ा। वह गाँव में पुण्यात्मा मशहूर थे। पूर्णमासी को नित्य सत्यनारायण की कथा सुनते;पर पटवारी होने के नाते खेत बेगार में जुतवाते थे,सिंचाई बेगार में करवाते थे और असामियों को एक दूसरे से लड़ाकर रक़में मारते थे। सारा गाँव उनसे काँपता था! ग़रीबों को दस-दस,पाँच-पाँच कर्ज देकर उन्होंने कई हज़ार की सम्पत्ति बना ली थी। फ़मल की चीजें असामियों से लेकर कचहरी और पुलिस के अमलों की भेंट करते रहते थे। इससे इलाके भर में उनकी अच्छी धाक थी। अगर कोई उनके हत्थे नहीं चढ़ा,तो वह दारोगा गंडासिह थे,जो हाल में इस इलाके में आये थे। परमार्थी भी थे। बुखार के दिनों में सरकारी कुनैन बाँटकर यश कमाते थे,कोई बीमार आराम हो,तो उसकी कुशल पूछने अवश्य जाने थे। छोटे-मोटे झगड़े आपस ही में तय कर देते थे। शादी-ब्याह में अपनी पालकी,कालीन और महफ़िल के सामान मॅगनी देकर लोगों का उबार कर देते थे। मौका पाकर न चूकते थे,पर जिसका खाते थे,उसका काम भी करते थे।

बोले--यह तुमने क्या रोग पाल लिया होरी?

होरी ने पीछे फिरकर पूछा--तुमने क्या कहा लाला--मैंने सुना नहीं।

पटेश्वरी पीछे से क़दम बढ़ाते हुए बराबर आकर बोले, यही कह रहा था कि धनिया के साथ क्या तुम्हारी बुद्धि भी घास खा गयी। झुनिया को क्यों नही उसके बाप के घर भेज देते, सेंत-मेंत में अपनी हँसी करा रहे हो। न जाने किसका लड़का लेकर आ गयी और तुमने घर में बैठा लिया। अभी तुम्हारी दो-दो लड़कियाँ ब्याहने को बैठी हुई हैं,सोचो कैसे बेड़ा पार होगा।

होरी इस तरह की आलोचनाएँ,और शुभ कामनाएंँ सुनते-सुनते तंग आ गया था। खिन्न होकर बोला--यह सब मैं समझता हूँ लाला! लेकिन तुम्हीं बताओ,मैं क्या करूँ! मैं झुनिया को निकाल दूंँ,तो भोला उसे रख लेंगे? अगर वह राजी हों,तो आज मैं उसे उनके घर पहुंँचा दूंँ,अगर तुम उन्हें राजी कर दो,तो जनम-भर तुम्हारा औसान मानूंँ;मगर वहाँ तो उनके दोनों लड़के खून करने को उतारू हो रहे हैं। फिर मैं उसे कैसे निकाल दूंँ। एक तो नालायक आदमी मिला कि उसकी बाँह पकड़कर दगा दे गया। मैं भी निकालगा,तो इस दशा में वह कहीं मेहनत-मजूरी भी तो न कर सकेगी। कहीं डूब-धस मरी तो किसे अपराध लगेगा। रहा लड़कियों का ब्याह सो भगवान मालिक है। जव उसका समय आयेगा,कोई न कोई रास्ता निकल ही आयेगा। लड़की तो हमारी बिरादरी में आज तक कभी कुंँआरी नहीं रही। बिरादरी के डर से हत्यारे का काम नहीं कर सकता।

होरी नम्र स्वभाव का आदमी था। सदा सिर झुकाकर चलता और चार बातें गम खा लेता था। हीरा को छोड़कर गाँव में कोई उसका अहित न चाहता था,पर समाज