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गो-दान
 

दातादीन बोले--तुम्हें इस दुष्टा को घर में न रखना चाहिए था। दूध में मक्खी पड़ जाती है,तो आदमी उसे निकालकर फेंक देता है,और दूध पी जाता है। सोचो,कितनी बदनामी और जग-हँसाई हो रही है। वह कुलटा घर में न रहती, तो कुछ न होता। लड़कों से इस तरह की भूल-चूक होती रहती है। जब तक बिरादरी को भात न दोगे,वाम्हनों को भोज न दोगे,कैसे उद्धार होगा? उसे घर में न रखते,तो कुछ न होता। होरी तो पागल है ही,तु कैसे धोखा खा गयी।

दातादीन का लड़का मातादीन एक चमारिन से फंसा हुआ था। इसे सारा गाँव जानता था;पर वह तिलक लगाता था, पोथी-पत्रे बाँचता था,कथा-भागवत कहता था,धर्म-संस्कार कराता था। उसकी प्रतिष्ठा में जरा भी कमी न थी। वह नित्य स्नान-पूजा करके अपने पापों का प्रायश्चित्त कर लेता था। धनिया जानती थी,झनिया को आश्रय देने ही से यह सारी विपत्ति आयी है। उसे न जाने कैसे दया आ गयी,नहीं उसी रात को झुनिया को निकाल देती,तो क्यों इतना उपहास होता;लेकिन यह भय भी होता था कि तब उसके लिए नदी या कुआँ के सिवा और ठिकाना कहाँ था। एक प्राण का मूल्य देकर-एक नहीं दो प्राणों का--वह अपने मरजाद की रक्षा कैसे करती? फिर झनिया के गर्भ में जो बालक है,वह धनिया ही के हृदय का टुकड़ा तो है। हॅसी के डर से उसके प्राण कैसे ले लेती! और फिर झुनिया की नम्रता और दीनता भी उसे निरस्त्र करती रहती थी। यह जली-भुनी बाहर से आती;पर ज्योंही झुनिया लोटे का पानी लाकर रख देती और उसके पांव दवाने लगती,उसका क्रोध पानी हो जाता। बेचारी अपनी लज्जा और दुःख से आप दवी हुई है,उसे और क्या दबाये,मरे को क्या मारे।

उसने तीव्र स्वर में कहा-हमको कुल-परतिसठा इतनी प्यारी नहीं है महाराज,कि उसके पीछे एक जीव की हत्या कर डालते। ब्याहता न सही;पर उसकी बाँह तो पकड़ी है मेरे बेट ने ही। किस मुंह से निकाल देती। वही काम बड़े-बड़े करते हैं,मुदा उनसे कोई नहीं बोलता,उन्हें कलंक ही नहीं लगता। वही काम छोटे आदमी करते हैं,तो उनकी मरजाद विगड़ जाती है,नाक कट जाती है। बड़े आदमियों को अपनी नाक दूसरों की जान से प्यारी होगी,हमें तो अपनी नाक इतनी प्यारी नहीं।

दातादीन हार माननेवाले जीव न थे। वह इस गाँव के नारद थे। यहाँ की वहाँ वहाँ की यहाँ,यही उनका व्यवसाय था। वह चोरी तो न करते थे,उसमें जान-जोखिम था;पर चोरी के माल में हिस्सा बॅटाने के समय अवश्य पहुँच जाते थे। कहीं पीठ में धूल न लगने देते थे। जमींदार को आज तक लगान की एक पाई न दी थी,कुर्की आती,तो कुएं में गिरने चलते,नोखेराम के किये कुछ न बनता;मगर असामियों को सूद पर रुपए उधार देते थे। किसी स्त्री को कोई आभूषण बनवाना है,दातादीन उसकी सेवा के लिए हाज़िर हैं। शादी-ब्याह तय करने में उन्हें बड़ा आनन्द आता है,यश भी मिलता है,दक्षिणा भी मिलती है। बीमारी में दवा-दारू भी करते हैं,झाड़-फूंक भी,जैसी मरीज़ की इच्छा हो। और सभा-चतुर इतने हैं कि जवानों में जवान बन जाते हैं,बालकों में वालक और बूढ़ों में बूढ़े। चोर के भी मित्र हैं और साह के भी। गांव में किसी को उन पर