सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गो-दान.djvu/१३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
गो-दान
१३५
 


गले यह रोग मढ़ दोगे। न जाने किस बुरी साइत में तुमको देखा। न तुम गाय लेने आते,न यह सब कुछ होता। तुम आगे-आगे जाकर जो कुछ कहना-सुनना हो,कह-सुन लेना। मैं पीछे से जाऊँगी।

गोबर ने कहा--नही-नहीं,पहले तुम जाना और कहना, मैं बाजार से सौदा बेचकर घर जा रही थी। रात हो गयी है,अब कैसे जाऊँ। तब तक मैं आ जाऊँगा।

झुनिया ने चिन्तित मन से कहा--तुम्हारी अम्मांँ बड़ी गुस्सैल है। मेरा तो जी काँपता है।कहीं मुझे मारने लगे तो क्या करूँगी।

गोबर ने धीरज दिलाया--अम्माँ की आदत ऐसी नहीं। हम लोगों तक को तो कभी एक तमाचा मारा नहीं,तुम्हें क्या मारेंगी। उनको जो कुछ कहना होगा मुझे कहेंगी,तुमसे तो बोलेंगी भी नहीं।

गाँव समीप आ गया। गोबर ने ठिठककर कहा--अब तुम जाओ।

झुनिया ने अनुरोध किया--तुम भी देर न करना।

'नही-नहीं,छन भर में आता हूँ,तू चल तो।'

'मेरा जी न जाने कैसा हो रहा है। तुम्हारे ऊपर क्रोध आता है।'

'तुम इतना डरती क्यों हो? मै तो आ ही रहा हूँ।'

'इससे तो कही अच्छा था कि किसी दूसरी जगह भाग चलते।'

'जब अपना घर है,तो क्यों कहीं भागें? तुम नाहक डर रही हो।'

'जल्दी से आओगे न?'

'हांँ-हांँ,अभी आता हूँ।'

'मुझमे दग़ा तो नहीं कर रहे हो? मुझे घर भेजकर आप कही चलने बनो।'

'इतना नीच नहीं हूँ झूना! जब तेरी बाँह पकड़ी है, तो मरते दम तक निभाऊँगा।'

झुनिया घर की ओर चली। गोबर एक क्षण दुविधे में पड़ा खड़ा रहा। फिर एकाएक सिर पर मॅडरानेवाली धिक्कार की कल्पना भयंकर रूप धारण करके उसके सामने खड़ी हो गयी। कहीं सचमुच अम्माँ माग्ने दौड़े,तो क्या हो? उसके पाँव जैसे धरती मे चिमट गये। उसके और उसके घर के बीच केवल आमों का छोटा-सा वाग था। झुनिया की काली परछाई धीरे-धोरे जाती हुई दीख रही थी। उसकी ज्ञानेन्द्रियों बहुत नेज़ हो गयी थी। उसके कानों में ऐसी भनक पड़ी,जैसे अम्मा झुनिया को गाली दे रही हैं। उसके मन की कुछ ऐसी दशा हो रही थी,मानो सिर पर गड़ाँसे का हाथ पड़ने वाला हो। देह का सारा रक्त जैसे सूख गया हो। एक क्षण के बाद उसने देखा,जैसे धनिया घर से निकलकर कहीं जा रही हो। दादा के पास जाती होगी!साइत दादा खा-पीकर मटर अगोरने चले गये है। वह मटर के खेत की ओर चला। जौ-गेहूँ के खेतों को रौदता हुआ वह इस तरह भागा जा रहा था,मानो पीछे दौड़ आ रही है। वह है दादा की मंँडैया वह रुक गया और दबे पाँव जाकर मॅडैया के पीछे बैठ गया। उसका अनुमान ठीक निकला। वह पहुँचा ही था कि धनिया की बोली सुनायी दी।ओह!गजब हो गया।अम्माँ इतनी कठोर हैं। एक अनाथ लड़की पर इन्हें तनिक भी दया नहीं आती। और जो मैं