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पृष्ठ:गो-दान.djvu/१७०

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गो-दान
१६९
 

मिसेज खन्ना ने अपने पति को कार की तरफ़ जाते देखा, तो उधर चली गयीं। मिर्ज़ा भी बाहर निकल गये। मेहता ने मंच पर से अपनी छड़ी उठायी और बाहर जाना चाहते थे कि मालती ने आकर उनका हाथ पकड़ लिया और आग्रह-भरी आँखों से बोली––आप अभी नहीं जा सकते। चलिए, पापा से आपकी मुलाक़ात कराऊँ और आज वहीं खाना खाइए।

मेहता ने कान पर हाथ रखकर कहा––नहीं, मुझे क्षमा कीजिए। वहाँ सरोज मेरी जान खायगी। मैं इन लड़कियों से बहुत घबराता हूँ।

'नहीं-नहीं, मैं जिम्मा लेती हूँ जो वह मुंह भी खोले।'

'अच्छा आप चलिए, मैं थोड़ी देर में आऊँगा।'

'जी नहीं, यह न होगा। मेरी कार सरोज को लेकर चल दी। आप मुझे पहुंचाने तो चलेंगे ही।'

दोनों मेहता की कार में बैठे। कार चली।

एक क्षण के बाद मेहता ने पूछा––मैंने सुना है, खन्ना साहब अपनी बीवी को मारा करते हैं। तब से मुझे इनकी सूरत से नफ़रत हो गयी। जो आदमी इतना निर्दयी हो, उसे मैं आदमी नहीं समझता। उस पर आप नारी जाति के बड़े हितैषी बनते हैं। तुमने उन्हें कभी समझाया नहीं?

मालती उद्विग्न होकर बोली––ताली हमेशा दो हथेलियों से बजती है, यह आप भूल जाते हैं।

'मैं तो ऐसे किसी कारण की कल्पना ही नहीं कर सकता कि कोई पुरुष अपनी स्त्री को मारे।'

'चाहे स्त्री कितनी ही बदज़बान हो?'

'हाँ, कितनी ही।'

'तो आप एक नये किस्म के आदमी हैं।'

'अगर मर्द बदमिज़ाज है, तो तुम्हारी राय में उस मर्द पर हंटरों की बौछार करनी चाहिए, क्यों?'

स्त्री जितनी क्षमाशील हो सकती है पुरुष नही हो सकता। आपने खुद आज यह बात स्वीकार की है।'

'तो औरत की क्षमाशीलता का यही पुरस्कार है। मैं समझता हूँ, तुम खन्ना को मुंह लगाकर उसे और भी शह देती हो। तुम्हारा वह जितना आदर करता है, तुमसे उसे जितनी भक्ति है, उसके बल पर तुम बड़ी आसानी से उसे सीधा कर सकती हो; मगर तुम उसकी सफ़ाई देकर स्वयं उस अपराध में शरीक हो जाती हो।'

मालती उत्तेजित होकर बोली––तुमने इस समय यह प्रसंग व्यर्थ ही छेड़ दिया। मैं किसी की बुराई नहीं करना चाहती; मगर अभी आपने गोविन्दी देवी को पहचाना नहीं? आपने उनकी भोली-भाली शान्त-मुद्रा देखकर समझ लिया, वह देवी हैं। मैं उन्हें इतना ऊँचा स्थान नहीं देना चाहती। उन्होंने मुझे बदनाम करने का जितना