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गो-दान
 

प्रयत्न किया है, मुझ पर जैसे-जैसे आघात किये हैं, वह बयान करूँ, तो आप दंग रह जायेंगे और तब आपको मानना पड़ेगा कि ऐसी औरत के साथ यही व्यवहार होना चाहिए।

'आखिर उन्हें आपसे इतना द्वेष है, इसका कोई कारण तो होगा?'

'कारण उनसे पूछिए। मुझे किसी के दिल का हाल क्या मालूम?'

'उनसे बिना पूछे भी अनुमान किया जा सकता है और वह यह है––अगर कोई पुरुष मेरे और मेरी स्त्री के बीच में आने का साहस करे, तो मैं उसे गोली मार दूंगा, और उसे न मार सकूँगा, तो अपनी छाती में मार लूंगा। इसी तरह अगर मैं किसी स्त्री को अपने और अपनी स्त्री के बीच में लाना चाहूँ, तो मेरी पत्नी को भी अधिकार है कि वह जो चाहे, करे। इस विषय में मैं कोई समझौता नहीं कर सकता। यह अवैज्ञानिक मनोवृत्ति है जो हमने अपने बनले पूर्वजों से पायी है और आजकल कुछ लोग इसे असभ्य और असामाजिक व्यवहार कहेंगे; लेकिन मैं अभी तक उस मनोवृत्ति पर विजय नहीं पा सका और न पाना चाहता हूँ। इस विषय में मैं कानून की परवाह नहीं करता। मेरे घर में मेरा कानून है।'

मालती ने तीव्र स्वर में पूछा––लेकिन आपने यह अनुमान कैसे कर लिया कि मैं आपके शब्दों में खन्ना और गोविन्दी के बीच आना चाहती हूँ। आप ऐसा अनुमान करके मेरा अपमान कर रहे हैं। मैं खन्ना को अपनी जूतियों की नोक के बराबर भी नहीं समझती।

मेहता ने अविश्वास-भरे स्वर में कहा––यह आप दिल से नहीं कह रही हैं मिस मालती! क्या आप सारी दुनिया को बेवकूफ़ समझती हैं? जो बात सभी समझ रहे हैं, अगर वही बात मिसेज खन्ना भी समझें, तो मैं उन्हें दोष नहीं दे सकता।

मालती ने तिनककर कहा––दुनिया को दूसरों को बदनाम करने में मजा आता है। यह उसका स्वभाव है। मैं उसका स्वभाव कैसे बदल दूं; लेकिन यह व्यर्थ का कलंक है। हाँ, मैं इतनी बेमुरौवत नहीं हूँ कि खन्ना को अपने पास आते देखकर दुत्कार देती। मेरा काम ही ऐसा है कि मुझे सभी का स्वागत और सत्कार करना पड़ता है। अगर कोई इसका कुछ और अर्थ निकालता है, तो वह...वह...

मालती का गला भर्रा गया और उसने मुँह फेरकर रूमाल से आँसू पोंछे। फिर एक मिनट बाद बोली––औरों के साथ तुम भी मुझे...मुझे...इसका दुख है...मुझे तुमसे ऐसी आशा न थी।

फिर कदाचित् उसे अपनी दुर्बलता पर खेद हुआ। वह प्रचण्ड होकर बोली––आपको मुझ पर आक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं है। अगर आप भी उन्हीं मर्दो में हैं, जो किसी स्त्री-पुरुष को साथ देखकर उँगली उठाये बिना नहीं रह सकते, तो शौक़ से उठाइए। मुझे रत्ती-भर परवा नहीं; अगर कोई स्त्री आपके पास बार-बार किसी न किसी बहाने से आये, आपको अपना देवता समझे, हरएक बात में आपसे सलाह ले, आपके चरणों के नीचे आँखें बिछाये, आपका इशारा पाते ही आग में कूदने को