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गो-दान
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तैयार हो, तो मैं दावे से कह सकती हूँ, आप उसकी उपेक्षा न करेंगे; अगर आप उसे ठुकरा सकते हैं, तो आप मनुष्य नहीं हैं। उसके विरुद्ध आप कितने ही तर्क और प्रमाण लाकर रख दें; लेकिन मैं मानूंगी नहीं। मैं तो कहती हूँ, उपेक्षा तो दूर रही, ठुकराने की बात ही क्या, आप उस नारी के चरण धो-धोकर पियेंगे, और बहुत दिन गुजरने के पहले वह आपकी हृदयेश्वरी होगी। मैं आपसे हाथ जोड़कर कहती हूँ, मेरे सामने खन्ना का कभी नाम न लीजिएगा।

मेहता ने इस ज्वाला में मानों हाथ सेंकते हुए कहा––शर्त यही है कि मैं खन्ना को आपके साथ न देखूँ।

'मैं मानवता की हत्या नहीं कर सकती। वह आयेंगे तो मैं उन्हें दुर-दुराऊँगी नहीं।'

'उनसे कहिए, अपनी स्त्री के साथ सज्जनता से पेश आयें।'

'मैं किसी के निजी मुआमले में दखल देना उचित नहीं समझती। न मुझे इसका अधिकार है!'

'तो आप किसी की जबान नहीं बन्द कर सकतीं।'

मालती का बँगला आ गया। कार रुक गयी। मालती उतर पड़ी और बिना हाथ मिलाये चली गयी। वह यह भी भूल गयी कि उसने मेहता को भोजन की दावत दी है। वह एकान्त में जाकर खूब रोना चाहती है। गोविन्दी ने पहले भी आघात किये हैं; पर आज उसने जो आघात किया है, वह बहुत गहरा, बड़ा चौड़ा और बड़ा मर्मभेदी है।


राय साहब को जब खबर मिली कि इलाके में एक वारदात हो गयी है और होरी से गाँव के पंचों ने जुरमाना वसूल कर लिया है, तो फौरन नोखेराम को बुलाकर जवाबतलब किया––क्यों उन्हें, इसकी इत्तला नहीं दी गयी। ऐसे नमकहराम दगाबाज़ आदमी के लिए उनके दरबार में जगह नहीं है।

नोखेराम ने इतनी गालियाँ खायीं, तो ज़रा गर्म होकर बोले––मैं अकेला थोड़ा ही था। गाँव के और पंच भी तो थे। मैं अकेला क्या कर लेता।

राय साहब ने उनकी तोंद की तरफ भाले-जैसी नुकीली दृष्टि से देखा––मत बको जी! तुम्हें उसी वक्त कहना चाहिए था, जब तक सरकार को इत्तला न हो जाय, मैं पंचों को जुरमाना न वसूल करने दूंगा। पंचों को मेरे और मेरी रिआया के बीच में दखल देने का हक़ क्या है? इस डाँड-बाँध के सिवा इलाके में और कौन-सी आमदनी है? वसूली सरकार के घर गयी। बकाया असामियों ने दबा लिया। तब मैं कहाँ जाऊँ? क्या खाऊँ, तुम्हारा सिर! यह लाखों रुपए साल का खर्च कहाँ से आये? खेद है कि दो पुश्तों से कारिन्दगीरी करने पर भी मुझे आज तुम्हें यह बात बतलानी पड़ती है। कितने रुपए वसूल हुए थे होरी से?

नोखेराम ने सिटपिटा कर कहा––अस्सी रुपए!