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गो-दान
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बाजरे की रोटियाँ और बथुए का साग पका रही थी। सुगन्ध से रूपा के मुंह में पानी भर आया।

पुनिया ने पूछा-क्या अभी तेरे घर आग नहीं जली, क्या री?

रूपा ने दीनता से कहा--आज तो घर में कुछ था ही नहीं,आग कहाँ से जलती?

'तो फिर आग काहे को माँगने आयी है?'

'दादा तमाखू पियेंगे।'

पुनिया ने उपले की आग उसकी ओर फेंक दी;मगर रूपा ने आग उठायी नही और समीप जाकर बोली-तुम्हारी रोटियाँ महक रही हैं काकी! मुझे बाजरे की रोटियाँ बड़ी अच्छी लगती हैं।

पुनिया ने मुस्कराकर पूछा-खायेगी?

'अम्मा डाटेंगी।'

'अम्मा से कौन कहने जायगा।'

रूपा ने पेट-भर रोटियाँ खायीं और जूठे मुंह भागी हुई घर चली गयी।

होरी मन-मारे बैठा था कि पण्डित दातादीन ने आकर पुकारा। होरी की छाती धड़कने लगी। क्या कोई नयी विपत्ति आनेवाली है। आकर उनके चरण छुये और कौड़े के सामने उनके लिए माँची रख दी।

दातादीन ने बैठते हुए अनुग्रह भाव से कहा-अबकी तो तुम्हारे खेत परती पड़ गये होरी! तुमने गाँव में किसी से कुछ कहा नहीं,नहीं भोला की मज़ाल थी कि तुम्हारे द्वार मे बैल खोल ले जाता! यहीं लहास गिर जाती। मैं तुममे जनेऊ हाथ में लेकर कहता हूँ होरी,मैंने तुम्हारे ऊपर डाँड़ न लगाया था। धनिया मुझे नाहक वदनाम करती फिरती है। यह लाला पटेश्वरी और झिंगुरीसिंह की कारस्तानी है। मैं तो लोगों के कहने से पंचायत में बैठ भर गया था। वह लोग तो और कड़ा दण्ड लगा रहे थे। मैंने कह-सुनके कम कराया;मगर अब सब जने सिर पर हाथ धरे रो रहे है। समझे थे,यहाँ उन्हीं का राज है। यह न जानते थे,कि गाँव का राजा कोई और है। तो अब अपने खेतों की बोआई का क्या इन्तजाम कर रहे हो?

होरी ने करुण-कंठ से कहा-क्या बताऊँ महाराज, परती रहेंगे।

'परती रहेंगे? यह तो बड़ा अनर्थ होगा !'

'भगवान् की यही इच्छा है,तो अपना क्या बस।'

'मेरे देखते तुम्हारे खेत कैसे परती रहेंगे। कल मैं तुम्हारी बोआई करा दूंगा। अभी खेत में कुछ तरी है। उपज दस दिन पीछे होगी,इसके सिवा और कोई बात नहीं। हमारा तुम्हारा आधा साझा रहेगा। इसमें न तुम्हें कोई टोटा है,न मुझे। मैंने आज बैठे-बैठे सोचा,तो चित्त बड़ा दुखी हुआ कि जुने-जुताये खेत परती रहे जाते हैं!'

होरी सोच में पड़ गया। चौमासे-भर इन खेतों में खाद डाली,जोता और आज केवल बोआई के लिए आधी फसल देनी पड़ रही है। उस पर एहसान कैसा जता रहे हैं। लेकिन इससे तो अच्छा यही है कि खेत परती पड़ जायँ। और कुछ न