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गो-दान
१८३
 


छोड़कर न जाने कहाँ मारा-मारा फिर रहा है। चंचल सुभाव का आदमी है,इसीसे मुझे शंका होती है कि कहीं और न फंस गया हो। ऐसे आदमियों को तो गोली मार देना चाहिए। आदमी का धरम है,जिसकी बाँह पकड़े,उसे निभाये। यह क्या कि एक आदमी की जिन्दगी खराब कर दी और आप दूसरा घर ताकने लगे।

युवती रोने लगी। मातादीन ने इधर-उधर ताककर उसका हाथ पकड़ लिया और समझाने लगा-तुम उसकी क्यों परवा करती हो झूना,चला गया,चला जाने दो। तुम्हारे लिए किस बात की कमी है। रुपये-पैसे,गहना-कपड़ा,जो चाहो मुझसे लो।

झुनिया ने धीरे से हाथ छुड़ा लिया और पीछे हटकर बोली-सव तुम्हारी दया है महाराज! मैं तो कहीं की न रही। घर से भी गयी,यहाँ से भी गयी। न माया मिली,न राम ही हाथ आये। दुनिया का रंग-ढंग न जानती थी। इसकी मीठी-मीठी बातें सुनकर जाल में फंस गई।

मातादीन ने गोबर की बुराई करनी शुरू की-वह तो निरा लफंगा है,घर का न घाट का। जब देखो,माँ-बाप से लड़ाई। कहीं पैसा पा जाय,चट जुआ खेल डालेगा,चरस और गाँजे में उसकी जान बसती थी,सोहदों के साथ घूमना,बहू-बेटियों को छेड़ना,यही उसका काम था। थानेदार साहब बदमाशी में उसका चालान करनेवाले थे,हम लोगों ने बहुत खुशामद की तब जा कर छोड़ा। दूसरों के खेत-खलिहान से अनाज उड़ा लिया करता था। कई बार तो खुद उसी ने पकड़ा था;पर गाँव-घर समझकर छोड़ दिया।

सोना ने बाहर आ कर कहा-भाभी,अम्माँ ने कहा है, अनाज निकालकर धूप में डाल दो,नहीं तो चोकर बहुत निकलेगा। पण्डित ने जैसे बखार में पानी डाल दिया हो।

मातादीन ने अपनी सफ़ाई दी–मालूम होता है,तेरे घर बरसात नहीं हुई। चौमासे में लकड़ी तक गीली हो जाती है, अनाज तो अनाज ही है।

यह कहता हुआ वह बाहर चला गया।सोना ने आकर उसका खेल बिगाड़ दिया।

सोना ने झुनिया से पूछा-मातादीन क्या करने आये थे?

झुनिया ने माथा सिकोड़ कर कहा--पगहिया माँग रहे थे। मैंने कह दिया,यहाँ पगहिया नहीं है।

'यह सब बहाना है। बड़ा खराब आदमी है।'

'मुझे तो बड़ा भला आदमी लगता है। क्या खराबी है उसमें?'

'तुम नहीं जानतीं? सिलिया चमारिन को रख हुए है।'

'तो इसी से खराब आदमी हो गया?'

'और काहे से आदमी खराब कहा जाता है?'

'तुम्हारे भैया भी तो मुझे लाये हैं। वह भी खराब आदमी हैं?'

सोना ने इसका जवाब न देकर कहा-मेरे घर में फिर कभी आयेगा,तो दुत्कार दूंगी।

'और जो उससे तुम्हारा ब्याह हो जाय?'