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गो-दान
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से जब कभी रास्ते में मिल जाते,कुशल पूछते। उनकी कथा में जाकर आरती में कुछ न देना अपमान की बात थी।

आरती का थाल उन्हीं के हाथ में होगा। उनके सामने होरी कैसे खाली हाथ आरती ले लेगा! इससे तो कहीं अच्छा है कि वह कथा में जाये ही नहीं। इतने आदमियों में उन्हें क्या याद आयेगी कि होरी नहीं आया। कोई रजिस्टर लिये तो बैठा नहीं है कि कौन आया,कौन नहीं आया। वह जाकर खाट पर लेट रहा।

मगर उसका हृदय मसोस-मसोस कर रह जाता था। उसके पास एक पैसा भी नहीं है! ताँबे का एक पैसा! आरती के पुण्य और माहात्म्य का उसे विलकुल ध्यान न था। बात थी केवल व्यवहार की। ठाकुरजी की आरती तो वह केवल श्रद्धा की भेंट देकर ले सकता था; लेकिन मर्यादा कैसे तोड़े,सबकी आँखों में हेठा कैसे बने!


सहसा वह उठ बैठा। क्यों मर्यादा की गुलामी करे। मर्यादा के पीछे आरती का पुण्य क्यों छोड़े। लोग हँसेंगे,हँस लें। उसे परवा नहीं है। भगवान् उसे कुकर्म से बचाये रखें,और वह कुछ नहीं चाहता।

वह ठाकुर के घर की ओर चल पड़ा।


खन्ना और गोविन्दी में नहीं पटती। क्यों नहीं पटती, यह बताना कठिन है।ज्योतिष के हिसाब से उनके ग्रहों में कोई विरोध है,हालाँकि विवाह के समय ग्रह और नक्षत्र खूब मिला लिये गये थे। काम-शास्त्र के हिसाब से इस अनबन का और कोई रहस्य हो सकता है,और मनोविज्ञान वाले कुछ और ही कारण खोज सकते हैं। हम तो इतना ही जानते हैं कि उनमें नहीं पटती। खन्ना धनवान हैं,रसिक हैं,मिलनसार हैं,रूपवान् हैं,अच्छे खासे पढ़े-लिखे हैं और नगर के विशिष्ट पुरुपों में हैं। गोविंदी अप्सरा न हो,पर रूपवती अवश्य है;गेहुँआ रंग,लज्जाशील आँखें जो एक बार सामने उठकर फिर झुक जाती हैं,कपोलों पर लाली न हो पर चिकनापन है,गात कोमल,अंग-विन्यास सुडौल,गोल बाँहें, मुख पर एक प्रकार की अरुचि,जिसमें कुछ गर्व की झलक भी है,मानो संसार के व्यवहार और व्यापार को हेय समझती है। खन्ना के पास विलास के ऊपरी साधनों की कमी नहीं,अव्वल दरजे का बंगला है,अव्वल दरजे का फर्नीचर, अव्वल दरजे की कार और अपार धन;पर गोविन्दी की दृष्टि में जैसे इन चीजों का कोई मूल्य नहीं। इस खारे सागर में वह प्यासी पड़ी रहती है। बच्चों का लालन-पालन और गृहस्थी के छोटे-मोटे काम ही उसके लिए सब कुछ हैं। वह इनमें इतनी व्यस्त रहती है कि भोग की ओर उसका ध्यान नहीं जाता। आकर्षण क्या वस्तु है और कैसे उत्पन्न हो सकता है,इसकी ओर उसने कभी विचार नहीं किया। वह पुरुष का खिलौना नहीं है,न उसके भोग की वस्तु, फिर क्यों आकर्षक बनने की चेष्टा करे;अगर पुरुष उसका असली सौन्दर्य देखने के लिए आँखें नहीं रखता,कामिनियों के पीछे मारा-मारा फिरता है,तो वह उसका दुर्भाग्य है। वह उसी प्रेम और निष्ठा से