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गो-दान
 


पति की सेवा किये जाती है जैसे द्वेष और मोह-जैसी भावनाओं को उसने जीत लिया है। और यह अपार सम्पत्ति तो जैसे उसकी आत्मा को कुचलती रहती है। इन आडम्बरों और पाखण्डों से मुक्त होने के लिए उसका मन सदैव ललचाया करता है। अपने सरल और स्वाभाविक जीवन में वह कितनी सुखी रह सकती थी,इसका वह नित्य स्वप्न देखती रहती है। तब क्यों मालती उसके मार्ग में आकर बाधक हो जाती! क्यों वेश्याओं के मुजरे होते,क्यों यह सन्देह और बनावट और अशान्ति उसके जीवन-पथ में काँटा वनती! बहुत पहले जब वह बालिका विद्यालय में पढ़ती थी,उसे कविता का रोग लग गया था,जहाँ दुःख और वेदना ही जीवन का तत्त्व है,सम्पत्ति और विलास तो केवल इसलिए है कि उसकी होली जलायी जाय,जो मनुप्य को असत्य और अशान्ति की ओर ले जाता है। वह अब कभी-कभी कविता रचती थी,लेकिन सुनाये किसे? उसकी कविता केवल मन की तरंग या भावना की उड़ान न थी,उसके एक-एक शब्द में उसके जीवन की व्यथा और उसके आँसुओं की ठंढी जलन भरी होती थी-किसी ऐसे प्रदेश में जा बसने की लालसा,जहाँ वह पाखंडों और वासनाओं से दूर अपनी शान्त कुटिया में सरल आनन्द का उपभोग करे। खन्ना उसकी कविताएँ देखते,तो उनका मजाक उड़ाते और कभी-कभी फाड़कर फेंक देते। और सम्पत्ति की यह दीवार दिन-दिन ऊंची होती जाती थी और दम्पति को एक दूसरे से दूर और पृथक् करती जाती थी। खन्ना अपने गाहकों के साथ जितना ही मीठा और नम्र था,घर में उनना ही कटु और उद्दण्ड। अक्सर क्रोध में गोविन्दी को अपशब्द कह बैठता, शिष्टता उसके लिए दुनिया को ठगने का एक साधन थी,मन का संस्कार नहीं। ऐसे अवसरों पर गोविन्दी अपने एकान्त कमरे में जा बैठती और रात की रात रोया करती और खन्ना दीवानखाने में मुजरे सुनता या क्लब में जाकर शरावें उड़ाता। लेकिन यह सब कुछ होने पर भी खन्ना उसके सर्वस्व थे। वह दलित और अपमानित होकर भी खन्ना की लौंडी थी। उनमे लड़ेगी,जलेगी, रोयेगी;पर रहेगी उन्हीं की। उनसे पृथक् जीवन की वह कोई कल्पना ही न कर सकती थी।

आज मिस्टर खन्ना किसी बुरे आदमी का मुंह देखकर उठे थे। सबेरे ही पत्र खोला,तो उनके कई स्टाकों का दर गिर गया था,जिसमें उन्हें कई हजार की हानि होती थी। शक्कर मिल के मजदूरों ने हड़ताल कर दी थी और दंगा-फसाद करने पर आमादा थे। नफे की आशा से चाँदी खरीदी थी;मगर उसका दर आज और भी ज्यादा गिर गया था। राय साहब से जो सौदा हो रहा था और जिसमें उन्हें खासे नफे को आशा थी,वह कुछ दिनों के लिए टलता हुआ जान पड़ता था। फिर रात को बहुत पी जाने के कारण इस वक्त सिर भारी था और देह टूट रही थी। इधर शोफ़र ने कार के इंजन में कुछ खराबी पैदा हो जाने की बात कही थी और लाहौर में उनके बैंक पर एक दीवानी मुकदमा दायर हो जाने का समाचार भी मिला था। बैठे मन में झुंझला रहे थे कि उसी वक्त गोविन्दी ने आकर कहा-भीष्म का ज्वर आज भी नहीं उतरा,किसी डाक्टर को बुला दो।