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पृष्ठ:गो-दान.djvu/२१०

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गो-दान
 


गयीं। यही आसा बँधी रहती थी कि कब वह दिन आयेगा और कब तुम्हें देखेंगी। कोई कहता था,मिरच भाग गया,कोई डमरा टापू बताता था। सुन-सुनकर जान सूखी जाती थी। कहाँ रहे इतने दिन?

गोबर ने शर्माने हुए कहा--कहीं दूर नहीं गया था अम्माँ, यह लखनऊ में तो था।

'और इतने नियरे रहकर भी कभी एक चिट्ठी न लिखी !'

उधर सोना और रूपा भीतर गोबर का सामान खोलकर चीज का बाँट-बखरा करने में लगी हुई थीं;लेकिन झुनिया दूर खड़ी थी;उसके मुख पर आज मान का शोख रंग झलक रहा है। गोबर ने उसके साथ जो व्यवहार किया है,आज वह उसका बदला लेगी। असामी को देखकर महाजन उससे वह रुपये वमूल करने को भी याकुल हो रहा है,जो उसने बट्टेखाते में डाल दिये थे। बच्चा उन चीजों की ओर लपक रहा था और चाहता था, सब-का-मब एक साथ मुंँह में डाल ले;पर झुनिया उसे गोद से उतरने न देती थी।

सोना बोली--भैया तुम्हारे लिए आईना-कंघी लाये हैं भाभी!

झुनिया ने उपेक्षा-भाव से कहा--मुझे ऐना-कंघी न चाहिए। अपने पास रखे रहें।

रूपा ने बच्चे की चमकीली टोपी निकाली--ओ हो! यह तो चुन्नू की टोपी है। और उसे बच्चे के सिर पर रख दिया।

झुनिया ने टोपी उतारकर फेंक दी। और सहमा गोबर को अन्दर आते देखकर वह बालक को लिए अपनी कोठरी में चली गयी। गोबर ने देखा,सारा सामान खुला पड़ा है। उसका जी तो चाहता है,पहले झुनिया से मिलकर अपना अपराध क्षमा कराये;लेकिन अन्दर जाने का साहग नहीं होता। वहीं बैठ गया और चीजें निकालनिकाल हर-एक को देने लगा,मगर रूपा इसलिए फूल गयी कि उसके लिए चप्पल क्यों नहीं आये,और सोना उसे चिढ़ाने लगी,तू क्या करेगी चप्पल लेकर,अपनी गुड़िया से खेल। हम तो तेरी गुड़िया देखकर नहीं रोते,तू मेरा चप्पल देखकर क्यों रोती है? मिठाई बाँटने की जिम्मेदारी धनिया ने अपने ऊपर ली। इतने दिनों के बाद लड़का कुशल से घर आया है। वह गाँव-भर में बैना बटवायेगी। एक गुलाब -जामुन रूपा के लिए ऊँट के मुंँह में जीरे के समान था। वह चाहती थी, हाँडी उसके सामने रख दी जाय,वह कूद-कूद खाय।

अब सन्दूक खुला और उसमें से साड़ियाँ निकलने लगीं। सभी किनारदार थीं;जैसी पटेश्वरी लाला के घर में पहनी जाती हैं,मगर हैं बड़ी हलकी। ऐसी महीन साड़ियाँ भला कै दिन चलेंगी ! बड़े आदमी जितनी महीन साड़ियाँ चाहे पहनें। उनकी मेहरियों को बैठने और सोने के सिबा और कौन काम है। यहाँ तो खेत-खलिहान सभी कुछ है। अच्छा! होरी के लिए धोती के अतिरिक्त एक दुपट्टा भी है।

धनिया प्रसन्न होकर बोली--यह तुमने वड़ा अच्छा किया बेटा! इनका दुपट्टा बिलकुल तार-तार हो गया था।