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गो-दान
२११
 

गोबर को उतनी देर में घर की परिस्थिति का अन्दाज हो गया था। धनिया की साड़ी में कई पेंबदे लगे हुए थे। सोना की साड़ी सिर पर फटी हुई थी और उसमें से उसके बाल दिखाई दे रहे थे। रूपा की धोती में चारों तरफ झालरें-सी लटक रही थीं। सभी के चेहरे रूखे,किसी की देह पर चिकनाहट नहीं। जिधर देखो,विपन्नता का साम्राज्य था।

लड़कियाँ तो साड़ियों में मगन थीं। धनिया को लड़के के लिए भोजन की चिन्ता हुई। घर में थोड़ा-सा जौ का आटा साँझ के लिए संचकर रखा हुआ था। इस वक्त तो चबैने पर कटती थी;मगर गोबर अब वह गोबर थोड़े ही है। उसको जौ का आटा खाया भी जायगा। परदेश में न जाने क्या-क्या खाता-पीता रहा होगा। जाकर दुलारी की दूकान से गेहूँ का आटा, चावल,घी उधार लायी। इधर महीने से सहुआइन एक पैसे की चीज भी उधार न देती थी;पर आज उसने एक बार भी न पूछा,पैसे कब दोगी।

उसने पूछा--गोबर तो खूब कमा के आया है न?

धनिया बोली--अभी तो कुछ नहीं खुला दीदी!अभी मैंने भी कुछ कहना उचित न समझा। हाँ,सबके लिए किनारदार साड़ियाँ लाया है। तुम्हारे आसिरवाद से कुशल से लौट आया,मेरे लिए तो यही बहुत है।

दुलारी ने असीस दिया--भगवान करे,जहाँ रहे कुशल से रहे। माँ-बाप को और क्या चाहिए! लड़का समझदार है। और छोकरों की तरह उड़ाऊ नहीं है। हमारे रुपए अभी न मिले,तो याज तो दे दो। दिन-दिन बोझ बढ़ ही तो रहा है।

इधर सोना चुन्नू को उसका फ्राक और टोप और जूता पहनाकर राजा बना रही थी,बालक इन चीजों को पहनने से ज्यादा हाथ में लेकर खेलना पसन्द करता था। अन्दर गोबर और झुनिया में मान-मनौवल का अभिनय हो रहा था।

झुनिया ने तिरस्कार भरी आँखों से देखकर कहा--मुझे लाकर यहाँ बैठा दिया। आप परदेश की राह ली। फिर न खोज, न खवर कि मरती है या जीती है। साल-भर के बाद अब जाकर तुम्हारी नींद टूटी है। कितने बड़े कपटी हो तुम। मैं तो सोचती हूँ कि तुम मेरे पीछे-पीछे आ रहे हो और आप उड़े,तो साल-भर के बाद लौटे। मर्दो का विश्वास ही क्या,कहीं कोई और ताक ली होगी। सोचा होगा,एक घर के लिए है ही,एक बाहर के लिए भी हो जाय।

गोबर ने सफा़ई दी-–झुनिया,मैं भगवान को साक्षी देकर कहता हूँ जो मैंने कभी किसी की ओर ताका भी हो। लाज और डर के मारे घर से भागा जरूर;मगर तेरी याद एक छन के लिए भी मन से न उतरती थी। अब तो मैंने तय कर लिया है कि तुझे भी लेता जाऊँगा;इसलिए आया हूँ। तेरे घरवाले तो बहुत बिगड़े होंगे?

'दादा तो मेरी जान लेने ही पर उतारू थे।'

'सच!'

'तीनों जने यहाँ चढ़ आये थे। अम्माँ ने ऐसा डाटा कि मुंँह लेकर रह गये। हाँ,हमारे दोनों बैल खोल ले गये।'