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गो-दान
 

यह चर्चा इतनी फैली कि साँझ से ही तमाशा देखनेवाले जमा होने लगे। आसपास के गांवों से दर्शकों की टोलियाँ आने लगीं। दस बजते-बजते तीन-चार हजार आदमी जमा हो गये। और जब गिरधर झिंगुरीसिंह का रूप धरे अपनी मण्डली के साथ खड़ा हुआ,तो लोगों को खड़े होने की जगह भी न मिलती थी। वही खल्वाट सिर,वही बड़ी मूछे,और वही तोंद! बैठे भोजन कर रहे हैं और पहली ठकुराइन वैठी पंखा झल रही हैं।

ठाकुर ठकुराइन को रसिक नेत्रों से देखकर कहते हैं-अब भी तुम्हारे ऊपर वह जोबन है कि कोई जवान भी देख ले, तो तड़प जाय। और ठकुराइन फूलकर कहती हैं,जभी तो नयी नवेली लाये।

'उसे तो लाया हूँ तुम्हारी सेवा करने के लिए। वह तुम्हारी क्या बराबरी करेगी?'

छोटी बीवी यह वाक्य सुन लेती है और मुंह फुलाकर चली जाती है।

दूसरे दृश्य में ठाकुर खाट पर लेटे हैं और छोटी बहू मुंह फेरे हुए जमीन पर बैठी है। ठाकुर बार-बार उसका मुंह अपनी ओर फेरने की विफल चेष्टा करके कहते हैंमुझसे क्यों रूठी हो मेरी लाड़ली?

'तुम्हारी लाड़ली जहाँ हो,वहाँ जाओ। मैं तो लौंडी हूँ,दूसरों की सेवा-टहल करने के लिए आयी हूँ।'

'तुम मेरी रानी हो। तुम्हारी रोवा-टहल करने के लिए वह बुढ़िया है।'

पहली ठकुराइन सुन लेती हैं और झाड़ लेकर घर में घुसती हैं और कई झाड़ उन पर जमाती हैं। ठाकुर साहब जान बचाकर भागते हैं।

फिर दूसरी नकल हुई,जिसमें ठाकुर ने दस रुपए का दस्तावेज लिखकर पाँच रुपए दिये,शेप नजराने और तहरीर और दस्तूरी और ब्याज में काट लिये।

किसान आकर ठाकुर के चरण पकड़कर रोने लगता है। बड़ी मुश्किल से ठाकुर रुपए देने पर राजी होते हैं। जव कागज लिख जाता है और असामी के हाथ में पाँच रुपए रख दिये जाते हैं,तो वह चकराकर पूछता है

'यह तो पाँच ही हैं मालिक!'

'पाँच नहीं दस हैं। घर जाकर गिनना।'

'नहीं सरकार,पाँच हैं!'

'एक रुपया नजराने का हुआ कि नहीं?'

'हाँ,सरकार!'

'एक तहरीर का?'

'हाँ,सरकार!'

'एक कागद का?'

'हाँ,सरकार!'

'एक दस्तूरी का?'

'हाँ,सरकार!'