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पृष्ठ:गो-दान.djvu/२२४

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गो-दान
 

गोबर ने सारा वृत्तान्त कह सुनाया और अन्त में बोला-इनके ऊपर रिन का बोझ इसी तरह बढ़ता जायगा। मैं कहाँ तक भरूँगा? उन्होंने कमा-कमाकर दूसरों का घर भरा है। मैं क्यों उनकी खोदी हुई खंदक में गिरूँ? इन्होंने मुझसे पूछकर करज नहीं लिया। न मेरे लिए लिया। मैं उसका देनदार नहीं हूँ।

उधर मुखियों में गोबर को नीचा दिखाने के लिए षड्यन्त्र रचा जा रहा था। यह लौंडा शिकंजे में न कसा गया,तो गाँव में उधम मचा देगा। प्यादे से फर्जी हो गया है न,टेढ़े तो चलेगा ही। जाने कहाँ से इतना कानून सीख आया है? कहता है, रुपए सैकड़े सूद से बेसी न दूंगा। लेना हो तो लो,नहीं अदालत जाओ। रात इसने सारे गाँव के लौंडों को बटोरकर कितना अनर्थ किया। लेकिन मुखियों में भी ईर्ष्या की कमी न थी। सभी अपने बराबरवालों के परिहास पर प्रसन्न थे। पटेश्वरी और नोखेराम में वातें हो रही थीं। पटेश्वरी ने कहा-मगर सबों को घर-घर की रत्ती-रत्ती का हाल मालूम है। झिंगुरीसिंह को तो सबों ने ऐसा रगेटा कि कुछ न पूछो। दोनों ठकुराइनों की बातें सुन-सुनकर लोग हँसी के मारे लोट गये।

नोखेराम ने ठट्ठा मारकर कहा-मगर नक़ल सच्ची थी। मैंने कई वार उनकी छोटी बेगम को द्वार पर खड़े लौंडों से हँसी करते देखा।

'और बड़ी रानी काजल और सेंदुर और महावर लगाकर जवान बनी रहती हैं।'

'दोनों में रात-दिन छिड़ी रहती है। झिंगुरी पक्का बेहया है। कोई दूसरा होता तो पागल हो जाता।'

'सुना,तुम्हारी बड़ी भद्दी नकल की। चमरिया के घर में बन्द कराके पिटवाया।'

'मैं तो बचा पर बकाया लगान का दावा करके ठीक कर दूंगा। वह भी क्या याद करेंगे कि किसी से पाला पड़ा था।'

'लगान तो उसने चुका दिया है न?'

'लेकिन रसीद तो मैंने नहीं दी। सबूत क्या है कि लगान चुका दिया? और यहाँ कौन हिसाब-किताब देखता है? आज ही प्यादा भेजकर बुलाता हूँ।'

होरी और गोबर दोनों ऊख बोने के लिए खेत सींच रहे थे। अबकी ऊख की खेती होने की आशा तो थी नहीं,इसलिए खेत परती पड़ा हुआ था। अब बैल आ गये हैं,तो ऊख क्यों न बोई जाय!

मगर दोनों जैसे छत्तीस बने हुए थे। न बोलते थ,न ताकते थ। होरी बैलों को हाँक रहा था और गोबर मोट ले रहा था। सोना और रूपा दोनों खेत में पानी दौड़ा रही थीं कि उनमें झगड़ा हो गया। विवाद का विषय यह था कि झिंगुरीसिंह की छोटी ठकुराइन पहले खुद खाकर पति को खिलाती है या पति को खिलाकर तब खुद खाती है। सोना कहती थी,पहले वह खुद खाती है। रूपा का मत इसके प्रतिकूल था।

रूपा ने जिरह की-अगर वह पहले खाती है,तो क्यों मोटी नहीं है? ठाकुर क्यों मोटे हैं? अगर ठाकुर उन पर गिर पड़ें,तो ठकुराइन पिस जायें।

सोना ने प्रतिवाद किया-तू समझती है,अच्छा खाने से लोग मोटे हो जाते