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पृष्ठ:गो-दान.djvu/२२३

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गो-दान
२२३
 


पेट में धर्म की क्रान्ति मची हुई थी। अगर ठाकुर या बनिये के रुपए होते,तो उसे ज्यादा चिन्ता न होती;लेकिन ब्राह्मण के रुपए! उसकी एक पाई भी दब गयी,तो हड्डी तोड़कर निकलेगी। भगवान न करें कि ब्राह्मण का कोप किसी पर गिरे। बंस में कोई चिल्लू-भर पानी देनेवाला,घर में दिया जलानेवाला भी नहीं रहता। उसका धर्मभीरु मन त्रस्त हो उठा। उसने दौड़कर पण्डितजी के चरण पकड़ लिये और आर्त स्वर में बोला-महाराज,जब तक मैं जीता हूँ,तुम्हारी एक-एक पाई चुकाऊँगा। लड़कों की बातों पर मत जाओ। मामला तो हमारे-तुम्हारे बीच में हुआ है। वह कौन होता है?

दातादीन ज़रा नरम पड़े-ज़रा इसकी ज़बरदस्ती देखो, कहता है दो सौ रुपए के सत्तर लो या अदालत जाओ। अभी अदालत की हवा नहीं खायी है,जभी। एक बार किसी के पाले पड़ जायेंगे,तो फिर यह ताव न रहेगा। चार दिन सहर में क्या रहे,तानासाह हो गये।

'मैं तो कहता हूँ महाराज,मैं तुम्हारी एक-एक पाई चुकाऊँगा।'

'तो कल से हमारे यहाँ काम करने आना पड़ेगा।'

'अपनी ऊख बोना है महाराज,नहीं तुम्हारा ही काम करता।'

दातादीन चले गये तो गोवर ने तिरस्कार की आँखों से देखकर कहा-गये थे देवता को मनाने! तुम्हीं लोगों ने तो इन सबों का मिजाज बिगाड़ दिया है। तीस रुपए दिये,अब दो सौ रुपए लेगा,और डाँट ऊपर से बतायेगा और तुमसे मजूरी करायेगा और काम कराते-कराते मार डालेगा!

होरी ने अपने विचार में सत्य का पक्ष लेकर कहा-नीति हाथ से न छोड़ना चाहिए बेटा,अपनी-अपनी करनी अपने साथ है। हमने जिस ब्याज पर रुपए लिए,वह तो देने ही पड़ेंगे। फिर ब्राह्मण ठहरे। इनका पैसा हमें पचेगा? ऐसा माल तो इन्हीं लोगों को पचता है।

गोबर ने त्योरियाँ चढ़ाई-नीति छोड़ने को कौन कह रहा है। और कौन कह रहा है कि ब्राह्मण का पैसा दबा लो? मैं तो यही कहता हूँ कि इतना सूद नहीं देंगे। बंकवाले बारह आने सूद लेते हैं। तुम एक रुपए ले लो। और क्या किसी को लूट लोगे?

'उनका रोयाँ जो दुखी होगा?'

'हुआ करे। उनके दुखी होने के डर से हम बिल क्यों खोदें?'

'बेटा,जब तक मैं जीता हूँ,मुझे अपने रास्ते चलने दो। जब मैं मर जाऊँ,तो तुम्हारी जो इच्छा हो वह करना।'

तो फिर तुम्हीं देना। मैं तो अपने हाथों अपने पाँव में कुल्हाड़ी न मारूँगा। मेरा गधापन था कि तुम्हारे बीच में बोला-तुमने खाया है,तुम भरो। मैं क्यों अपनी जान दूं?'

यह कहता हुआ गोबर भीतर चला गया। झुनिया ने पूछा-आज सबेरे-सबेरे दादा से क्यों उलझ पड़े?